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________________ ११२ आप्तवाणी-२ लेकिन ज्ञान नहीं हो तो भीतर से कहना चाहिए कि खुद की पहले की भूल होगी। अपनी खुद की ही भूल होगी, इसलिए सामनेवाला अपमान कर रहा है। मेरा कोई पहले का हिसाब होगा, इसलिए वापस लौटा रहा है। इसलिए हमें जमा कर लेना है। यदि अपमान करनेवाले से कहें कि, 'भाई, तू फिर से अपमान कर तो?' तब वह कहेगा, 'मैं कोई फालतू हूँ?' यह तो जो उधारी है वही जमा करवा जाते हैं। जन्मा तब से, मरा तब तक सबकुछ अनिवार्यता ही है। ये कितने ही पास हो जाते हैं, कुछ फेल हो जाते हैं और कुछ पढ़ते ही नहीं हैं। यह सब पहले के हिसाब में रहा हुआ है। यह सारा हिसाब कौन रखता है? यह तो भीतर ग़ज़ब का एडजस्टमेन्ट है। भीतर अनंत शक्तियाँ हैं। यह हिसाब चार ध्यान के आधार पर है। जैसा ध्यान बरते वैसा फल आता है। __ अनंतकाल से भटक रहे हैं, फिर भी आर्तध्यान और रौद्रध्यान होने बंद नहीं हुए। इसलिए उन्हें समझना चाहिए। घर में झगड़े हों तो क्षमापना करनी चाहिए। सामनेवाला बैर नहीं बाँधे, उस प्रकार से क्षमापना करनी चाहिए। भगवान की आज्ञा में रहना, वही सबसे ऊँचा धर्मध्यान है। यह क्षमापना कैसे करें? मुफ्त में क्षमापना क्यों? नहीं, जितना आप देते हो उतना ही वापस आता है। रौद्रध्यान और आर्तध्यान दो ही कचोटते हैं। बाहरवाला अन्य कोई नहीं कचोटता! क्रोध-मान-माया-लोभ हटाने से हटनेवाले नहीं हैं। डॉक्टर ने चीनी खाने को मना किया हो तो कैसे जागृत रहा जाता है? यदि डॉक्टर ने कहा हो कि, 'आपको हार्टअटेक आया है और नमक बिल्कुल नहीं खाना है, खाओगे तो दूसरा अटैक आ जाएगा और आप मर जाओगे।' तब आप कितने अलर्ट रहते हो! वहाँ क्यों सावधान रहते हो? ये आर्तध्यान और रौद्रध्यान, यह तो अनंतकाल का मरण है। इसलिए इन्हें बंद करना ही है, ऐसा निश्चित किया कि तुरंत ही पचास प्रतिशत आर्तध्यान और रौद्रध्यान कम हो जाएँगे। आप भक्ति-वक्ति, सामायिक या पूजा-पाठ जो करना हो वह करना, जिस गुरु की आराधना की हो, उनकी आराधना करना, लेकिन आर्तध्यान और रौद्रध्यान नहीं हों, उतना करना। शुक्लध्यान
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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