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________________ आप्तवाणी-२ माता के गर्भ में जाता है, तब सूक्ष्म देह जो है वह, वीर्य और रज के स्थूल परमाणु एकदम खींच लेती है। उससे कार्यदेह का निर्माण हो जाता है। जब इंसान मरता है तब आत्मा, सूक्ष्म शरीर तथा कारण शरीर साथ में जाते हैं। सूक्ष्म शरीर हर एक में कॉमन होता है, लेकिन कारण शरीर हर एक के खुद के सेवित कॉज़ेज़ के अनुसार अलग-अलग होते हैं । सूक्ष्म शरीर इलेक्ट्रिकल बॉडी है, जो खुराक के बिना रह ही नहीं सकता। इसलिए मृत्यु के बाद तुरंत ही उसी क्षण माता के शरीर में प्रवेश प्राप्त करके ही रहता है और टाइमिंग मिलते ही वीर्य और रज के संयोग से एकदम स्थूल परमाणुओं को खुराक के रूप में चूस लेता है और पिंड के रूप में स्थूल देह प्राप्त कर लेता है । उसके बाद जीव डेवेलप होता जाता है और करीब पाँच महीने का होने पर संचार होना शुरू हो जाता है । ११० एक क्षण के लिए भी 'हमें' 'हमारे' स्वरूप के अलावा एक भी संसारी विचार नहीं आता । हमारी इच्छा है ज़रूर कि सब हमारे इस सुख को प्राप्त करें। ध्यान ही आनेवाले जन्म का साधन है ! उसके सिवा और कोई साधन है ही नहीं, अगले जन्म का ! वीतरागों का मत क्या है? ध्यान बदलो । दुर्ध्यान होता हो तो इतना पुरुषार्थ करो कि दुर्ध्यान नहीं हो । प्रश्नकर्ता : उसमें पुरुषार्थ किस तरह करें? दादाश्री : क्रिया नहीं बदल सकती लेकिन ध्यान बदल सके ऐसा है। इस काल के दबाव से रौद्रध्यान होता है, आर्तध्यान होता है, लेकिन भगवान ने उनके सामने पुरुषार्थ का साधन बतलाया है, उसमें आर्तध्यान और रौद्रध्यान को हटाना है। जैसे हम खुराक में हितकारी खुराक खाते हैं और अहितकारी खुराक हटा देते हैं, उसी तरह आर्तध्यान और रौद्रध्यान हटाने हैं और धर्मध्यान करना है । आर्तध्यान - रौद्रध्यान प्रश्नकर्ता : आर्तध्यान और रौद्रध्यान किसे कहते हैं ?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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