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________________ धर्मध्यान प्रश्नकर्ता : पूजा-सेवा करते हैं, वह धर्मध्यान कहलाता है न? दादाश्री : ना, उसे धर्मध्यान नहीं कहते । पूजा - सेवा करते समय आपका ध्यान कहाँ बरतता है, वह देखा जाता है। भगवान क्रिया को देखते ही नहीं, लेकिन क्रिया के समय ध्यान कहाँ बरत रहा है, वह देखते हैं। एक सेठ थे। रोज़ सुबह चार घंटे पूजा, पाठ, सामायिक वगैरह करते थे । एक दिन एक व्यक्ति ने दरवाज़ा खटखटाया और सेठानी ने खोलकर पूछा, ‘क्या काम है?' उस व्यक्ति ने सेठानी से पूछा कि, 'सेठ कहाँ गए हैं?' सेठानी ने तुरंत ही जवाब दिया, 'सेठ कूड़ेखाने में गए हुए हैं।' सेठ अंदर बैठे-बैठे ही सब सुन रहे थे, तब उन्हें लगा कि 'वास्तव में अभी तो मैं विषयों के ही ध्यान में था। भले ही मैं सामायिक में होऊँ, लेकिन ध्यान तो मेरा विषयरूपी कूड़े में ही था ।' तब उन्हें पक्का हो गया कि 'मुझसे तो मेरी पत्नी अधिक समझदार है।' सामायिक कर रहे हों, माला फेर रहे हों, लेकिन ध्यान यदि अन्यत्र गया हो, तब उस क्रिया का फल नहीं देखा जाता, लेकिन उस समय जिस ध्यान में खुद बरत रहा होता है, वही देखा जाता है । ध्यान, वही पुरुषार्थ जगत् भ्रांतिवाला है। वह क्रियाओं को देखता है, ध्यान को नहीं देखता। ध्यान अगले जन्म का पुरुषार्थ है और क्रिया, वह पिछले जन्म का पुरुषार्थ है। ध्यान अगले जन्म में फल देता है। ध्यान हुआ कि उस समय परमाणु बाहर से खिंचते हैं और वे ध्यान स्वरूप होकर भीतर सूक्ष्मता से संग्रहित हो जाते हैं और कारणदेह का सर्जन होता है। जब ऋणानुबंधी जीव
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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