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________________ सहज प्राकृत शक्ति देवियाँ ९५ लक्ष्मी जी मेहनत से नहीं आती या अक्ल से या ट्रिक करने से भी नहीं आती हैं। लक्ष्मी कैसे कमाई जाती है? यदि सीधी तरह कमाई जा सकती तो अपने मंत्रियों को चार आने भी नहीं मिलते! यह लक्ष्मी तो पुण्य से कमाई जाती हैं। पागल हो तो भी पुण्य से कमाता रहता है। पागल का उदाहरण देता हूँ। लक्ष्मी जी का आवन एक सेठ थे। सेठ और उनका मुनीम दोनों बैठे हुए थे। अहमदाबाद में ही तो न! लकड़ी का तख्ता और ऊपर गद्दी, ऐसा पलंग, सामने तिपाई। और उसके ऊपर भोजन का थाल था। सेठ खाना खाने बैठ रहे थे। सेठ की डिज़ाइन कहँ। बैठे थे तीन फुट जमीन पर। जमीन से डेढ़ फीट ऊपर सिर, मुँह का त्रिकोण आकार और बड़ी-बड़ी आँखें और बड़ा नाक, और होठ तो मोटे-मोटे थे पकौड़ी जैसे और पास में फोन। खाते-खाते फोन आए तो बात करते। सेठ को खाना तो आता नहीं था। दो-तीन पूरी के टुकड़े नीचे गिर गए थे और चावल तो कितने ही बिखरे हुए थे! नीचे! फोन की घंटी बजती और सेठ कहता कि 'दो हज़ार गाँठ ले लो।' और दूसरे दिन दो लाख रुपये कमा लेता था। मुनीम जी बैठे-बैठे माथाफोड करते और सेठ बिना मेहनत के कमाते हैं। यों सेठ तो अक़्ल से ही कमाते हुए दिखते हैं, लेकिन वह अक़्ल खरे समय पर पुण्य के कारण प्रकाश देती है। यह पुण्य से है। वह तो सेठ को और मुनीम जी को साथ में रखें, तब समझ में आएगा। खरी अक्ल तो सेठ के मुनीम में ही होती है, सेठ में नहीं। यह पुण्य कहाँ से आया? भगवान की समझकर भजना की, इसलिए? ना, बिना समझे भजना की, इसलिए। किसी पर उपकार किए, किसी का भला किया उन सबसे पुण्य बंधा। भगवान को नासमझी से भजते हैं, फिर भी अग्नि में हाथ नासमझी में डाल दे, तो भी जल जाता है न? यह अक्रम ज्ञान है। यहाँ लिफ्टमार्ग है, इसलिए खाते-पीते हुए भी मुक्ति बरतती है। आर्तध्यान और रौद्रध्यान नहीं होते हैं। वही पुणिया श्रावक का सामायिक यहाँ चखने को मिलता है। यह तो लोग पूरा दिन आर्तध्यान और रौद्रध्यान करते हैं, उनसे
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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