SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-२ नहीं हो, तो अनुभव नहीं हो पाता और अनुभव हुए बगैर मोक्ष में जाना नहीं हो पाता ! ९४ लक्ष्मी जी का जावन प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी जी की कमी किसलिए पड़ती है? दादाश्री : चोरियों से। जहाँ मन-वचन-काया से चोरियाँ नहीं होतीं, वहाँ लक्ष्मी जी मेहर करती है । लक्ष्मी का अंतराय (विघ्न, बाधा ) चोरी से है । ट्रिक और लक्ष्मी जी का बैर है । स्थूल चोरी बंद हो, तब जाकर तो ऊँची जाति में जन्म मिलता है। लेकिन सूक्ष्म चोरी यानि कि ट्रिक करते हैं, वह तो हार्ड रौद्रध्यान है, और उसका फल नर्कगति है । यह कपड़ा खींचकर देते हैं, वह हार्ड रौद्रध्यान है । ट्रिक तो होनी ही नहीं चाहिए । ट्रिक किसे कहा जाता है ? 'बहुत शुद्ध माल है ' कहकर मिलावटवाला माल देकर खुश होता है। और यदि हम कहें कि, 'ऐसा तो कहीं करना चाहिए?' तो तब वह कहता है कि, 'यह तो ऐसे ही किया जाता है।' लेकिन प्रामाणिकता की इच्छावाले को क्या कहना चाहिए कि, 'मेरी इच्छा तो अच्छा माल देने की है, लेकिन यह माल ऐसा है, यह ले जाइए ।' इतना कह दें, तब भी जोखिमदारी अपनी नहीं ! यह पूरा मुंबई शहर दुःखी है, क्योंकि पाँच लाख मिलें, इस योग्य हैं, और करोड़ की मुहर लगाकर बैठे हैं और जो इस योग्य हैं कि हज़ार मिले, वे लाख की मुहर लगाकर बैठे हैं ! प्रश्नकर्ता : पैसे विनाशी चीज़ हैं, इसके बावजूद उसके बगैर चलता नहीं है न? गाड़ी में बैठने से पहले पैसे चाहिए । दादाश्री : जिस तरह लक्ष्मी के बिना नहीं चलता, उसी तरह लक्ष्मी मिलनी-नहीं मिलनी, वह खुद की सत्ता की बात नहीं है न! यह लक्ष्मी मेहनत से मिलतीं, तब तो मज़दूर मेहनत करके मर जाते हैं, फिर भी मात्र खाने लायक ही मिलता है और मिल मालिक बिना मेहनत के दो मिलों के मालिक होते हैं । ये लक्ष्मी जी कैसे आती हैं और कैसे जाती हैं, वह हम जानते हैं ।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy