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________________ आप्तवाणी-२ गुणधर्म सहित हैं और अवस्था सहित भी हैं । तत्व परमानेन्ट हैं। मात्र प्राकृत अवस्थाएँ टेम्परेरी हैं I प्रकृति प्रसवधर्मी स्वभाव की है, इसलिए अनंत गुना उत्पन्न हो जाता ६६ है। प्रश्नकर्ता : प्रकृति प्रसवधर्मी है यानी क्या? दादाश्री : मैं समझाता हूँ आपको। ये यहाँ पर आसपास काँच जड़े हुए हों तो उनमें डेढ़ सौ लोग दिखाई देते हैं। तो क्या कोई डेढ़ सौ लोग बनाने गया था? यह तो एक में से अनंत खड़े हो जाते हैं, वैसा है। इससे फिर मार खाता है। यह तो सब स्पंदन स्वरूप है । एक स्पंदन उछाले, तो फिर नये स्पंदन खड़े होते हैं । लेकिन यदि तू स्पंदन बंद कर दे तो तुझ पर फिर कितने स्पंदन आएँगे? वे तो फिर बंद हो जाएँगे ! 1 प्रकृति के गुण ‘पर' हैं, आत्मा के नहीं हैं । जगत् ‘पर' के गुणों को 'स्वगुण' कहता है। लोग कहते हैं कि, 'ये भाई बहुत अच्छे हैं ।' लेकिन बुख़ार चढ़े और सन्निपात हो जाए, तब सभी कहेंगे कि, 'ये अच्छे नहीं है' अरे, प्राकृत गुण तो एक घंटे में लुप्त हो जाएँगे । भगवान ने क्या कहा है कि, 'संसार में भले ही कैसे भी ऊँचे गुण प्राप्त किए हों, क्षमा रखता हो, गुस्सा नहीं करता हो, फिर भी वे सारे प्रकृति गुण हैं। वे कब फ्रेक्चर हो जाएँगे, उसका पता नहीं चलेगा ।' प्रकृति खुद कफ, पित्त और वायु की बनी हुई है। वे तीनों बिगड़ जाएँगे तो सन्निपात हो जाएगा, तब वह क्या बोलेगा, उसका भी भान नहीं रहेगा । इसलिए भगवान ने कहा है कि, 44 'आप अपने 'खुद' के गुणधर्म में रहना ।" यह तो कढ़ी ज़रा ज़्यादा खा ली हो तो पित्त बढ़ जाता है । वे पराये गुण कब फ्रेक्चर हो जाएँगे, यह कहा नहीं जा सकता। जबकि 'खुद' के गुण तो कभी भी नहीं बदलते । इस प्रकृति का साइन्स ग़ज़ब का है ! यह समझने जैसा है। एक वैद्य एक मरीज़ से कह रहा था कि, 'केले मत खाना, ठंडे पड़ेंगे।' तो दूसरा कोई बीच में सुननेवाला घर जाकर कहेगा कि, 'केले मत खाना, ठंडे पड़ेंगे।' ये बिना भान के लोग, कहाँ का कहाँ लगा देते हैं । उस मरीज़
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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