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________________ प्रकृति ६७ के लिए केले नहीं खाना बहुत लाभदायी होता है और दूसरे के लिए अनुकूल होते हैं। लेकिन वह दूसरे को भी उल्टा भरमा देता है। यह ज्ञान कहाँ से ले आया? तो कहे कि, 'वे वैद्य कह रहे थे।' अरे वह तो उस व्यक्ति की प्रकृति को माफिक नहीं आ रहा था, लेकिन तू क्यों उसे पकड़ बैठा? तेरी प्रकृति के लिए तो अनुकूल था। हर एक में प्लस-माइनस होते हैं, इसलिए किसी की प्रकृति को माफिक आता है और दूसरे को माफिक नहीं आता है, लेकिन वह ज्ञान किसी और को नहीं कहना होता। आप चाय पीते हो? प्रश्नकर्ता : नहीं पीता। दादाश्री : चाय क्यों नहीं पीते? प्रश्नकर्ता : मुझे भाती नहीं। मुझे कॉफी अच्छी लगती है, इसलिए मैं कॉफी पीता हूँ। दादाश्री : चाय क्यों नहीं भाती है, उसका कारण है। यदि तुझे चाय दें तो भी तेरी प्रकृति को वह माफिक नहीं आती। अतः प्रकृति के सामने चाय आए, तो भी चाय पसंद नहीं करता है, और तेरी प्रकृति को कॉफी माफिक आती है, इसलिए कॉफी पी लेता है। इस प्रकृति को माफिक आए तब कहता है, 'मुझे भाता है।' और नहीं माफिक आए तब कहता है, 'मुझे नहीं भाती।' हम पूछे 'यह सब तूने जाना तो है, लेकिन वह तो रिलेटिव में जाना, लेकिन वास्तविक क्या है?' तो कहेगा, 'वह तो मैंने जाना नहीं।' वह वास्तविक क्या है? 'वही आत्मा है।' रिलेटिव व्यू पोइन्ट तो सभी जानते हैं, लेकिन रियल व्यू पोइन्ट भी जानना तो पड़ेगा न? दोनों व्यू पोइन्टस को जाने वह प्रज्ञावाले भाग में आता है और एक व्यू पोइन्ट जाने उसे बुद्धि कहते हैं। यह जो कोई बीवी-बच्चों को छोड़कर भाग जाता है, वह कोई खुद छोड़कर नहीं भागता, लेकिन प्रकृति उससे जबरन छुड़वा देती है। प्रकृति
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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