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________________ (33) (1) अर्हत् की ऐतिहासिकता (क) हिन्दू, जैन, बौद्ध, परम्परा के परिप्रेक्ष्य में प्रत्येक धर्म एवं दर्शन का उद्भव किसी महान् व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। उसी के अनुसार प्रत्येक धर्म में आस्था के आयाम स्वरूप, उपास्य रूप तथा आदर्श के रूप में किसी न किसी महान् व्यक्तित्व को स्वीकार किया जाता है। ऐसे महनीय व्यक्तित्व को हिन्दु परम्परा ईश्वरावतार, बौद्ध परम्परा बुद्ध तथा जैन परम्परा अर्हत् को मान्य करती है। गंगा, यमुना और सरस्वती के सदृश प्राचीन भारतीय संस्कृति सन्निहित भारतीय धर्मों की इस त्रिवेणी के उपास्य रूप स्वीकृत अर्हत्, बुद्ध और ईश्वररावतार का दिग्दर्शन हम आगम ग्रन्थों के माध्यम से करेंगे। यद्यपि ब्रह्मण एवं श्रमण परम्परा के उपास्य की संज्ञा, पर्यायभिन्नत्व पर आधारित है, तथापि यहाँ हम सर्वप्रथम यह शोध करेंगे कि पंचपरमेष्ठी में समाविष्ट प्रथम परमेष्ठी अर्हत् अभिधान का वेदों में, त्रिपिटकों में तथा जैनागमों में क्या स्वरूप है? श्रमण परम्परा में आज दो धाराएँ विकासोन्मुख है 1. जैन परम्परा 2. बौद्ध परम्परा / जैन परम्परा में सर्वाधिक महत्ता अर्हत् पद की है ही, किन्तु बौद्ध परम्परा में भी बुद्ध को अर्हत् पद से समलंकृत किया गया है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि श्रमण परम्परा के वर्तमान शासनपति महावीर एवं बुद्ध समकालीन थे। अतः स्वाभाविक है कि उस समय के परिवेश ने एक दूसरे को प्रभावित किया हो। अथवा उस समय ये शब्द ही प्रचलन में रहे हो। चूंकि अर्हत् से तात्पर्य पूजनीय, प्रशंसनीय भी है, अतः तत्परक अर्थानुसार भी अर्हत् पद प्रयुक्त किया गया हो। वेदों में अर्हत् पद प्रयुक्ति हिन्दु परम्परा का मूल उत्स वेदों पर आधारित हैं। क्या वेदों में अर्हत् पद प्रयुक्त है? यदि इनमें अर्हत् का उल्लेख है तो किस अर्थ में है? किस रूप में है? उसका हम अवलोकन करेंगे। वेद चतुष्क में से प्राचीनतम ऋग्वेद को मान्य किया जाता है। (ई.पू. 10001200) / ऋग्वेद में बहुदेववाद प्रधान होने से उसमें अनेक देवताओं के साथ अर्हत् पद प्रयोग किया गया है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में अग्नि के लिए प्रयुक्त अर्हत् पद की स्तुति है__ हम पूजनीय और सर्वभूतज्ञ अग्नि की रथ की तरह बुद्धि द्वारा इस स्तुति को प्रस्तुत करते हैं। 1. ऋग्वेदः 1. 94. 1.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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