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________________ (32) अध्याय-३ प्रथमपद अर्हत् परमेष्ठी : अवधारणा (1) 1. अर्हत् की ऐतिहासिकता(क) हिन्दु, जैन, बौद्ध परम्परा के परिप्रेक्ष्य में (ख) जैन आगमिक साहित्य में 1. अंग आगमों में 2. अंगबाह्य आगमों में (ग) आगमेतर साहित्य में (2) अर्हत् का व्युत्पत्ति-नियुक्ति परक अर्थ एवं पर्याय (3) केवली के प्रकार१. अर्हत् 2. सामान्यकेवली 4. अर्हत् की अलौकिकता, अनुपमता, अद्भुतता अद्वितीयता एवं श्रेष्ठता(अ) सिद्धापेक्षा प्राथमिकता (ब) पंच कल्याणक (क) अतिशय-वचनातिशय (द) निर्दोष व्यक्तित्व (5) अर्हत् पद की योग्यता-हेतु१. 'सवि जीव करूं शासन रसी' युक्त भावना 2. बीस स्थानक की आराधना (6) लोक मंगलकी उदात्त भावना 1. मनोभावना द्वारा व्यक्तित्व रूपान्तरण 2. धर्म संस्थापना 'परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्' के स्थान पर अहिंसादि पंच महाव्रतों के पालन द्वारा हिंसादि दुष्टता का नाश, लोककल्याण एवं विश्व मैत्री. ३.'भूभार-हरण' नहीं अपितु आत्म स्वराज्य प्राप्ति हेतु मुक्तिवरण (7) इतर दर्शनों में अर्हत् विषयक अवधारणा(क) मीमांसा सम्मत सर्वज्ञ का अभाव और अर्हत् (ख) हिन्दु परम्परागत अवतारवाद और अर्हत् (ग) बौद्ध परम्परा में अर्हत् एवं बोधिसत्त्व (घ) न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग दर्शनों के ईश्वर एवं जीवन्मुक्त (8) अर्हत् की अवधारणा का दार्शनिक अवदान . (9) अवतार, अर्हत्, बुद्ध, ईश्वर, जीवन्मुक्त का तुलनात्मक अध्ययन
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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