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________________ (16) प्लेटो के विचार जैन विचारधारा से अत्यन्त साम्य रखते हैं। जैन सम्मत आत्मा के तीन भेद परमात्मा, अन्तरात्मा तथा बहिरात्मा के अर्थ को ही ये प्रकट करते हैं। सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी परमात्मा अतिशय ज्ञान के धारक हैं। संरक्षक को इस कोटि में रखा जा सकता है। अन्तरात्मा से तात्पर्य यहाँ आचार्य, उपाध्याय और साधु से लिया जाता है। जो कि जिन शासन के सेनानी हैं। इस प्रकार सैनिक को अन्तरात्मा के समकक्ष रखा जा सकता है। बहिरात्मा का विभाव में परिणमन होने से वह सांसारिक क्रिया-कलापों में मशगूल रहता है। पृथग्जन में क्रिया का प्राधान्य होने से बहिरात्मा कहा जा सकता है। दार्शनिक अरस्तु ने भी ज्ञान के तीन स्तर स्वीकार किये हैं। प्रथम है इंद्रियानुभव जिसके द्वारा हमें केवल विशेषों का पृथक् ज्ञान होता है। द्वितीय है पदार्थ विज्ञान जिसके द्वारा हम विशेषों में सामान्य को खोजते हैं, उनके कार्य-कारण भाव संबंध को जानते हैं और उस ज्ञान को जीवन के उपयोग में लाते हैं। तृतीय ज्ञान है तत्त्वविज्ञान या दर्शन / यह सर्वोत्तम है। यह परम तत्त्व या परम सामान्य का, शुद्ध सत्ता का, सत् का ज्ञान है। यह परमार्थ तत्त्व के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान है। यह तत्त्व का दर्शन है। ___ अरस्तू का प्रथम ज्ञान स्तर बहिरात्म दशा को लिए हुए है। देहात्मस्वरूप में बहिरात्मा का ज्ञान निहित होता है। जबकि अन्तरात्मा का पुरुषार्थ शुद्धात्मस्वरूप की शोध में संलग्न होता है। परमात्मा शुद्धात्मा, परम तत्त्व ही हैं। जिस प्रकार जैन चिन्तकों ने आत्मदशा का वर्गीकरण किया, उसी प्रकार का वर्गीकृत भेद अन्य दर्शनों ने नहीं किया। किन्तु अविकसित रूप यत्किचित् दृष्टिगत अवश्य होता है। कठोपनिषद् में ज्ञानात्मा, महदात्मा तथा शान्तात्मा रूप मिलता है। डायसन ने छान्दोग्योपनिषद् के आधार पर-शरीरात्मा, जीवात्मा और परमात्मा, इस प्रकार उल्लेख किया है। स्वामी रामदास जीवात्मा, शिवात्मा, परमात्मा और निर्मलात्मा चार भेद स्वीकार करते हैं, अन्त में वे इन चारों का ही एकीकरण कर देते हैं। प्राचीनतम अंग आगम आचाराङ्ग में यद्यपि बहिरात्मा नाम से अभिहित नहीं 1. वही, पृ, 31 2. कठोपनिषद् 1.3.13. 3. परमात्म प्रकाश की अंग्रेजी प्रस्तावना (डॉ. ए.एन. उपाध्ये) पृ. 31 तथा हिन्दी रूपान्तर (पं. कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री) पृ. 101
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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