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________________ (74) मी साधन नहीं हैं। कुरूप सुन्दर रूप विनाके-जीव भी शरीर की सहायता से उच्च श्रेणी पर चढ गये हैं। - शास्त्रकारोंने जब यह आज्ञा दी है कि शरीर का भी मद नहीं करना चाहिए, तब रूप का मद करना तो वह बताही कैसे सकते हैं ? यह सोचने का कार्य हम बुद्धिमान मनुष्यों को सौंपते हैं कि रूप का मद करनेवाले मनुष्य बुद्धिमान हैं या मूर्ख ? सनत्कुमार चक्रवर्ती के समान धर्मात्मा पुरुषने भी जब रूप का मद किया तब तत्काल ही उस का रूप नष्ट हो गया। साथ ही सात महारोजोंने उनके शरीर में प्रवेश किया। इस महा पुरुष का संक्षिप्त वृत्तान्त और उससे उत्पन्न होनेवाली भावनाओं का आगे विवेचन किया जायगा। यहाँ तो हम केवल इतना ही बताना चाहते हैं, कि ऐसे महापुरुष के लिए भी असह्य वेदना का कारण हो गया है तब अपने समान पामर पुरुषों का रूप का मद कितना कष्टदायी हो सकता है ! यह बात कल्पना के बाहिर की है। तपमद को छोड़ने की शिक्षा देते हुए शास्त्रकार फरमाते हैं: नाभेयस्य तपोनिष्ठां श्रुत्वा वीरजिनस्य च / को नाम स्वल्पतपसि स्वकीये मदमाश्रयेत् // येनैव तपसा त्रुट्येत् तरसा कर्मसंचयः / तेनैव मददिग्धेन वर्धते कर्मसंचयः॥
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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