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________________ (77) पुरुषों को भी मौत क्षण मात्र में उठा ले गई है। कर्म राजाने बड़े बड़े शक्ति शालियों को पराधीन बना दिया है। इस से स्पष्ट है कि, बल कर्माधीन है; वह पराधीन चीज है / ऐसी पराधीन चीज का मद चतुर पुरुषों की चतुराई को कलंकित करता है / ___अब छठवें रूप मद को भी छोड़ देने की शास्त्रकार सूचना देते हैं सप्तधातुमये देहे चयापचयधर्मणः / जरारुजादिमावस्य को रूपस्य मदं वहेत् // सनत्कुमारस्य रूपं क्षणाक्षयमुपागतम् / श्रुत्वा सकर्णः स्वप्नेऽपि कुर्याद् रूपमदं किल ? // भावार्थ-जो रूप सात धातुओं वाले शरीर में बढ़ते और घटते रहने का धर्मवाला है; बुढापा रोग आदि भावों का जिस में निवास है ऐसे रूप का मद कौन करे ? कोई नहीं। सनत्कुमार चक्रवर्ती का रूप भी क्षणवार में नष्ट हो गया। यह बात सुनकर, क्या कोई स्वप्न में भी रूप का मद करेगा ? रूप सदैव शरीर का साथी है। इसलिए यह बात निर्विवाद है कि शरीर की अवस्था के अनुसार रूप की भी अवस्था होती है। नाश होना, मोटा होना दुबला होना आदि शरीर के जो स्वाभाविक धर्म हैं, वेही धर्म रूप में भी हैं। शरीर में तो एक विशेषता है कि वह धर्म का साधन है; परन्तु रूप तो धर्म का
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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