SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (71) भावार्थ-ऋषमदेव स्वामी की और श्रीवीरप्रमु की तप में जैसी दृढता थी उस को सुनकर, कौन ऐसा मनुष्य होगा जो अपने थोडे से तप मद का आश्रय करेगा ?-थोड़े से तप का मद करेगा ? जिस तप से शीघ्रही कर्म-संचय नष्ट होता है, वही तप यदि मद सहित किया जाता है तो उस से कर्म--संचय बढ़ जाता है / ____ पहिले तीर्थंकर श्रीऋषभदेव भगवान की और अंतिम तीर्थकर श्रीमहावीर भगवान की तपस्या अन्यान्य बाईस तीर्थकरों से अधिक है / इसीलिए यहाँ उन का दृष्टान्त दिया है। श्रीऋषभदेव भगवानने एक वर्ष तक आहार नहीं लिया था, इस का कारण यह था कि उस समय में लोग अन्नदान देना नहीं जानते थे। इसलिए वे भगवान के सामने हाथी, वोड़ा, स्थ, कन्या और धन आदि ग्रहण करने को उपस्थित करते थे; परन्तु भगवान को वे कल्पते न थे, वे उनके लेने योग्य नहीं थे. इसलिए भगवान उन को नहीं लेते थे। एक वर्ष के अंत में श्रेयांस कुमारने पारणा कराया। एक वर्ष तक किसी को बुद्धि दान देने की और नहीं झुकी / इस का मुख्य कारण यह था कि, पूर्व भव में भगवान के जीवने अन्तराय कर्म बाँधा था। वह श्री ऋषभदेव स्वामी के भव में उदित हुआ। क्योंकि किये हुए कर्म भोगे विना नहीं छूटते हैं। कहा है किउदयति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायां, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वहि /
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy