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________________ (28) wwwwwwwww सेठियाजैनग्रन्थमाला 105 ढलती अवस्था में मनोविकार शान्त होता जाता है उसके वेग और आवेश में कमी होती जाती है ; लेकिन आदतें दृढ़ और बलवान होती जाती हैं / अतएव आत्मा को सुखी बनाने वाली वृत्ति तथा आदते बाल्यावस्था में ही डालनी चाहिए / 106 शिक्षक को ऐसी कोशिश करनी चाहिए, जिससे बा. लक की बाल्यास्था सुख से बीते / प्रौढ़ अवस्था के कठिन विषय वाल्यावस्था में सिखाने से उनकी बढ़ती हुई शक्ति रुक जाती है, इसलिए सरलता के साथ बालक के हृदय में उत्तम 2 भावों का बीज बो देना चाहिए। 107 शरीर-सम्पत्ति पर मनुष्य का जितना अधिकार है, उतना अधिकार अपने चारित्र पर भी है / अर्थात् जैसे हम अपनी शक्ति बढ़ा सकते हैं, वैसे ही चारित्र भी। . 108 दुष्टस्वभाव स्वार्थ-परायणता और ईषां ये मित्रता का नाश करते हैं, तथा विरोध उत्पन्न करते हैं। --Nep उपदेशमणि-माला. (1) दूसरे को अपनी आज्ञा में चलाने की अपेक्षा तुम्हें दूसरे की आज्ञा में चलना पड़े, उस मार्ग का आदर करो।
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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