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________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (27) विचारोंको उत्तेजना मिलती हैं। निरुद्योगी भिखारी का समय लड़ाई झगड़े में तथा बुरे कामों में बीतता हैं / ऐसे आदमियों को दान देना क्या, मानो अपराधी-मण्डली उत्पन्न करना है / जो काम समाज की उन्नति में सहायक हों, वे ही करने योग्य हैं। 101 जो माता पिता अपने बालक के लाड़ प्यार में मा कर उन्हें स्वच्छन्द चलने देते हैं / अपराध करने पर भी किसी प्रकारकी शिक्षा-दण्ड नहीं देते त्था भावी हानि लाभ का विचार न कर मन मांगी चीज़ ला देते हैं, उनका मन न दुखे सिर्फ इसका खयाल रखते हैं। वे अपने बालक के जीवन में दुःख का बीज बोते हैं। 102 मितव्ययी होना, निरन्तर उद्योग में लगे रहना , अपने वचन का पालन करने में तत्पर रहना और भविष्य का विचार कर पहले सचेत रहना, ये गुण इस समय की सुधरी जनता की नीति में पहला स्थान पाते हैं। 103 मनुष्य को अनेक काम करने हैं, उन में से सबसे पहला तथा उपयोगी काम अपने चालचलन को दुरुस्त करना है। इस काम में सफलता पाने के लिए अपने विचार और स्वभाव को पवित्र रखने की पूर्ण आवश्यकता है। 104 मानसिक विचारों के आधीन ही मनुष्य का वर्ताव होता है / जिसकी मनोवृत्ति दूषित या दुष्ट नहीं, उसे ही वस्तुतः भाग्यशाली समझना चाहिए /
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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