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________________ ॥ ढाल ॥ १॥ नारायणानी देखी । जिम मधुकर मन मालतीरे ॥ ए. देशी॥ नाण पदाराधन करोरे, जिम लो निर्मळ नाणरे ॥ भविकजन ॥ श्रद्धा पण थीर तो रहेरे, जो नवतत्व विनाणरे ॥भवि०गाना||२॥ अज्ञानी करशे किश्युरे, शुं लहेशे पुण्य पापरे ॥ भवि०॥ पुण्य पाप नाणी लहेरे, करे निज निर्मळ आपरे । भविगाना० ॥२॥ प्रथम ज्ञान पछी दयारे, दशवकालिक वाणरे ॥ भवि० ॥ भेद एकावन तेहनारे, समजो चतुर सुजाणरे भविगाना०॥३॥ ॥दोहा॥ बहु कोडयो वरसे खपे, कर्म अज्ञाने जेह ॥ ज्ञानी श्वासोच्छ्वासमां, कमें खपावे तेह ॥ १॥ ॥ ढाल॥ ॥हो मतवाले साजना ॥ ए देशी॥ नाण नमो पद सातमे, जेहथी जाणे द्रव्यभाव ॥ मेरे लाल ॥ जाणे ज्ञान क्रिया वली, तिम चेतन ने जडभाव ॥ मेरे लाल ॥ ॥ नाण नमो० ॥ १॥ नरग सरग जाणे वली, जाणे वली मोक्ष संसार ॥ मे० ॥ हेय ज्ञेय उपोदय लहे, वली निश्चय ने व्यवहार ।। मे०॥ ना० ॥२॥ नाम ठवण द्रव्य भाव जे, वली सग नय ने सप्त भंग || मे०॥ जिनमुख पद्मद्रहथकी, लहो ज्ञान प्रवाह.सुगंग ॥ मे० ॥वा ॥३॥ ॥ इति सप्तम ज्ञानपद पूजा समाता ॥ .
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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