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________________ (१५२) ॥ श्रीपालना रासनी देशी ।। भक्षाऽभक्ष न जे विण लहिये, पेय अपेय विचार ॥ कृत्य अकृत्य न जे विण लहिये,ज्ञान ते सकल आधाररेभासि०३१॥ प्रथम ज्ञान ने पछे अहिंसा, श्री सिद्धांते भाख्यु ॥ ज्ञानने वंदो ज्ञान म निंदो, ज्ञानीए शिवमुख चाख्युरे।।मासि०३२॥ सकल क्रियानुं मूल जे श्रद्धा, तेहर्नु मूल जे कहिये । तेह ज्ञान नित नित वंदीजे,ते विण कहो किम रहियेरे।।भ०॥सि०३३॥ पंच ज्ञानमांहि जेह सदागम, स्वपर प्रकाशक जेह ।। दीपकपरे त्रिभुवन उपगारी,वली जिम रवि शशी मेहरे ॥भ०सि०३४॥ लोक उरध अध तिर्यग ज्योतिष, वैमानिक ने सिद्ध ॥ लोकालोक प्रगट सवि जेहथी, तेह ज्ञाने मुज शुद्धिरे ।। मासि०३५॥ ॥ढाल॥ ज्ञानावरणी जे कर्म छे, क्षयउपशम तस थायरे ॥ तो होये एहिज आतमा, ज्ञान अबोधता जायरे ॥ वीर० ॥८॥ ॥ इति सप्तम सम्यग्ज्ञानपद पूजा समाप्ता ॥ श्री पद्मविजयजीकृत नवपदजीनी पूजामांथी ॥ ज्ञानपद पूजा ॥ ॥दोहा॥ नाण स्वभाव जे जीवनो, स्वपर प्रकाशक जेह ॥ तेह नाण दीपक समुं, प्रणमो धर्म सनेह ॥ १॥
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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