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________________ ( १५१ ) श्री यशोविजयोपाध्यायादि विरचित नवपदनी पूजामांथी ॥ सम्यग् ज्ञानपद पूजा. ॥ ॥ काव्यं, इंद्रवज्रा वृत्तम् ॥ अन्नाण संमोह तमोहरस्स, नमो नमो नाण दिवायरस्स ॥ ॥ भुजंग प्रयात वृत्तम् ॥ होये जेहथी ज्ञान शुद्ध प्रबोधे, यथावर्ण नासे विचित्रावबोधे ॥ ते जाणीए वस्तु षड्द्रव्य भावा, न हुये वितत्था ( वाद ) नीजेच्छा स्वभावा ॥ १ ॥ होये पंच मत्यादि सुज्ञान भेदे, गुरूपास्तिथी योग्यता तेह वेदे ॥ बळी ज्ञेय हेय उपादेय रूप, रहे चित्तमां जेम ध्वांत प्रदीपे ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ उलालानी देशी ॥ भव्य ! नमो गुण ज्ञानने, स्वपर प्रकाशक भावेजी ॥ परजाय धर्म अनंतता, भेदाभेद स्वभावेजी ॥ १ ॥ ॥ उलालो ॥ जे मुख्य परिणति, सकल ज्ञायक, बोधभाव विळच्छना ॥ मति आदि पंच, प्रकार निर्मल, सिद्धसाधन लच्छना ॥ स्याद्वाद संगी, तत्त्वरंगी, प्रथम भेदाभेदता ॥ सविकल्प ने, अविकल्प वस्तु, सकल संशय छेदता || २ ||
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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