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________________ ( १५० ) ॥ श्रुत ज्ञानपद पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ पाप ताप हरणको, चंदन सम श्रुतज्ञान || श्रुत अनुभव रस रांचीए, माचिये जिन गुण तान ॥ १ ॥ इगुणविश (१९) पद पूजीए, जिनवर वचन अभंग ॥ तीर्थकर पद भवि लहे, छार कुमतिको संग ॥ २ ॥ ढाळ. ॥ राग श्याम कल्याण || ॥ श्री० ॥१॥ श्री राधेराणी दे डारो ने, वांसरी हमारी ॥ श्री राधे० ॥ ए देशी श्री चिदानंद विडारोने, कुमति जो मेरी ॥ श्री० ॥ ए आंकणी ॥ दुषम कामें कुमति अंधेरो, प्रगट करे सब चोरी बत्तीस दोषरहित श्रुत वांचे, आठ गुणे करी जोरी अरिहंत गणधर भाषित नीको, श्रुत केवळी बल फोरी || श्री० ॥३॥ प्रत्येकबुद्ध दश पूरवधर, श्रुत हरे भवकोरी ॥ श्री० ॥२॥ आठ आचार जो कालादिक है, साधे करमकी चोरी चारोहि अनुयोग गुरुगम वांचे, टूट कुपंथकी दोरी चौद भेद श्रुत वीश भेद है, अंग पयन्ना कोरी रत्नचूड नृप ए पद सेवी, आतम जिनपद होरी ॥ इति एकोनविंशति पूजा ॥ १९ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ श्री० ॥४॥ ॥ श्री० ॥५॥ श्री० ॥ ६ ॥ M श्री ० ॥ श्री० ॥ ८ ॥
SR No.023524
Book TitleGyanpanchami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManek Bahen
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1914
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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