SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Cori पुरणर्षि उपदेशमालाविशेषवृत्ती सन्धिः । RECORDC महि कुलालचक्ककमिण च(प)डिय फेरि भमडेइ, चित्ति चमक्किउ तिहुयणु वि दिसिपक्खा जोएइ। ॥१२॥ कुणइ तिहुयणतिक्खसंखोहु गलगजिगुंजाररउ जेण दंति आलाणु भंजिवि, दूरंतरिउसरहिं तुरयतटुसटाणु छडिवि । बहिरियकन्नु विवन्नमुहु पुरजणु जाइ समग्गु, गिरिकंदरि केसरि खुहिय लहहिं न निगममग्गु ॥१३॥ कणयपव्वयविंझस(म)झाहं अइतुंगई सिंगसयपरिहदंडि उडि खंडइ, हिमसेलकेलासगिरिअम्गचरणि चंपे वि चडइ । अइघणघणकरघायभरिओ सारइ दूरेण, भुवि भूरुह भंजेइ निरुपायवायवेगेण । ॥१४॥ सीसि सोहहिं तारतारोह कुसुमुक्कर मुक्कु जिव वच्छवीढि जिंव जच्चमोत्तिय, मणिकिंकिणितुल्ल तह तसु विसालकडिभायसंठिय । पत्तपाय रेहति पुण जिव मणिघग्घरमाल, को सक्कइ तसु वन्नणह मुत्ति सुमेरुविसाल ॥१५॥ कन्नि कुंडल दोवि ससिसूर सुरवाहिणि भालयलि तिलउ तासु सिरिखंड सुत्थिउ, तारायणु तेयनिहि कुसुमभारु मत्थइ समथिउ । मेहमाल सुविसाल नहि चारुचीरसिंगारु, सुरकामिणी कामंधु गउ नाइ भुयंगकुमारु ॥१६॥ अह पहुत्तउ सग्गि सोहम्मि सो जंगमु मेरुगिरि देव दूरदूरिण पलाइय, संजाउ हल्लोहलउ केवि दंडियखडहडियपाडिय । उब्भी वाहहिं अच्छरस दिसिदिसि धाहावंति, नियभत्तारहिं लम्गिगलि रक्खि रक्खि पभणति ॥१७॥ तियसतक्खणि ताहिंतो केवि कहकहवि धीरिमधरिवि सेल्लभल्लचावल्लपेल्ल(च्छ)हिं, पुठुट्टियपुण अवरि सरसहस्स नित्तु (ह)मेल्लहिं । गयमोग्गरखग्गाइ तसु किंपि न लग्गइ अंगि, जाहिं पलाणा तेवि तउ परिह पहारपसंगि ॥१८॥ मंतु मंतइ मंति देवाह जमदंडु वि खंडियउ पासपाणि सहुं पासि नदुउ, हाहारवमुहलमुहु देवसेन्नु दुग्गिहि पइटुउ । ल्हूसिजइ सकहं तणउ रयणरासिभंडारु, नद्रउ कहवि न जाणियउ सुरकरिपत्तपहारु ॥१९॥ चमरु पत्तउ चत्तमज्जाउ जहिं अच्छइ अच्छरहिं किउ अतुच्छु पिच्छणु नियंतउ, समयमेव सोहम्मवइ सभसुहम्म अक्खित्तचित्तउ । दंडपयंडि दुवारु तसु तिन्निवार घटेइ, संकसंकु सक्कह हियइ नं तक्खणि खोट्टेइ ॥२०॥ लोहलउ केलिर लमल्लयावाला रक्खि ROPORPORPeo ॥३००॥
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy