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________________ 2 पुरणर्षिसन्धिः । तियससामिउ तं निरिक्खेइ अइतिध्वकोवमिगवसु भिउडिमंगिभंगुरनिडालउ, कसु 'खुट्टउ कारु फिल कासु जाउ इय बुद्धि चालउ । उपदेशमाला- जाणेविणु पभणेइ हरि रे चमरा अइवंकु, मूढ! अप्पचत्तगु रमिउ जं इह आउ असंकु ॥२शा विशेषवृत्तौ|| जाव बोल्लणलग्गु चमरिंदु महओसरि म(स)त्ययह चंडु दंडु पिक्खेसि किं नहु, असहंतउ सुन्नमणु सकतेउ सा जाउ निप्पङ । बोल्लु न कल्लुवि नीसरह तत्तिउ खुटु मरटु, दिसिपक्खा पिक्खेइ खलु नासणनट्टि पय? ॥३०१॥ __॥२२॥ | भणइ तक्खणि सक्कु लल्लक्कु रे चमरा ! मरसि तुहुँ रंगभंगु संगेइ दितउ, सुरसुंदरिनट्टरसु इय पयट्टु मोटिव मलंतउ। तो कंपंतपडंततणु नट्ठउ जाव सुजाइ, वजदंडु ता चंडु हरि सुमरिउ पुट्टिहिं धाइ ॥२३॥ अह महुब्भडकोडिदंभोलिकरपंकयपत्तु खणि सक्कि मुक्कु नीसंकु पुढिहिं, उप्फालजालासहसजडफलालु खयकालु दिद्विहिं । फारफुरंतफूलिंगगणु तडयडरावविसालु, तसु लग्गउ अणुमग्गि निरु गिरिसंहारकरालु ॥२४॥ सक्कु चिंतइ तासु का सत्ति माहप्पु कासुवि रिसिहि सुसुमारि ता दिठु जिणवरु,तसु निस्सामहिम इय जाइ वज्जु तित्थु जि सुदुद्धरु । हा हा जिविउ मज्झु हउ, होसइ सामिहि पीड, संपइ काई करेमि हउं अहह अतक्कियभीड ॥२५॥ ताव धाविउ सक्कु नीसंकु नियहत्थि लेवा खणिण सामि पासि अपहुत्त असणिहिं, जो जालाजालभरि धुरु धरेइ खयकालअगणिहिं। माणुस मारइ तियसतणु पुणु फुडफाडणफारु, अञ्जवि पावइ नेव हरि निय करयलि सयधारु ॥२६॥ चमरु चल्लिउ मेल्लकारेण भयभिभलभु(तुल्लमणु कंपमाणतणु ताव अग्गइ, उम्मुक्क उक्कासहसु फुडफुलिंगु दंभोलि पेच्छइ । परिसक्कइ सक्को वि अणु ते केरिस पडिहाहिं, नहसिरि रयणावलि खुडिय नं रयणाई पडिहाहिं _રબો. वज्जु जंतउ चमर अणुमग्गि जावज्जवि तेयसिरि झलहलंतु नो चमरु पावइ, चउरंगुल अंतरइ ताव सक्कु सई हत्थि धारइ। मिरियमित्तु होएवि तउ पहुपायंतरि लुक्कु, भुवणमाणु सरणाय गउ चमरु सक्कि तो मुक्कु ॥२८॥ I १ कुद्धउ कालु किर 0. D. I २ निह 0. D. तहि । DoraemonormoneRCORDER DomperocreeDECERenea ॥३०१॥
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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