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________________ उपदेशमाला - विशेषवृत्तौ ॥ २९९ ॥ वच्छ ! वच्छल एहु घरवासु मई पालिउ एय चिरु तुज्झु सव्वु संपइ समप्पिउ, मई लेव वउ अवसु भवसरुचु भंगुरु विगप्पिउ । पाणमियदिक्खागहणु करइसु देविणु दाणु, चउहिं पुडेहिं पडिम्गहउ कारावइ सुपमाणु 118 11 ॥ ५ ॥ छछह तु पारे अणिखित्तु सत्तवु तवइ पडइ पुडइ जं भिक्ख पहिलइ, तं देइ दीणाइयह दुइयभागु कागाइ घलाइ । मयरमच्छसंखाइयह भागु तइज्जउ देइ, पुडइ चउत्थइ होइ जइ पाण तेण सुधरेइ वरिसबार छठु उकिट्टु पालेविणु तिव्वतवु अंतकालि मासोववासिउ, मिल्लेविणु पाण लहु जाउ चमरु चचानिवासिउ । असुरकुमार चकes नवविकमु चमरिंदु, ओहिनाणी जोयंतु सिरि उवरि निरिक्खर इंदु जो जगुत्तमि रम्मि सोहम्मि पढमिल्लि कप्पप्पवरि सभसुहम्मनामहि महालइ, सिहासणि रयणमइ सई सुररज्जु पालइ । नियपरिवार असेससहुं मिलिय भूरिभोगंगु, पेच्छंतउ पेच्छयछणु अच्छरनचणि चंगु ॥ ६॥ 11 2 11 ॥ ९ ॥ अह तठिओ तं निरिक्खंतु चंडकिउ चंडमइ मिसिमिसंतु कोवेण पुच्छइ, मह दुरंतलक्खणु कउणु उत्तमंगि आसिणु कहहिं देवकप्पाहिवइसक्कु कहिज्जइ एहु, सासयभावितसामि इह किंव किर कोहु करेहु चमरु सामिउ चमरचंचाहि तो उब्भडभिउडीभरभीडिउग्गभालग्गु भासइ, को सासयभाउ भणि करउं तेव सो जेव नासइ । गहगणगंधव्वासुरह मज्झि न पेक्खउं कोइ, मह चल्लंतह सम्मुहउ खणु एक्कु वि जो होइ चलिओ आउहसाल दप्पेण तुं (खुं)पा लइ पाणितलि परिहदंड उदंडु सो धरि, चल्लिउ सो सक्कुवरि रुट्टु नाइ जुवराउ संगरि । सुंसुमारपुरिपहु नियइ अह कयकाउस्सग्गु, एगराइपडिम ठियह नमइ पायपीढग्गु भइ सामिय! तुझ अणुभावि भंजेवउ सक्कु मइ हयपयावु संपइ करेवड, निनासियतेयसिरि पुट्टि दिंतु आलोईयव्वर । इय सामियनिस्सा सबलु चंचाहिवु चल्लेइ, वद्धारेविणु दिव्वतणु लक्खपमाणु करेइ अइसुदुद्धरु दद्दरारंभु पारंभइ पायतलि जेण तुंगडुंगर विडोलहिं पुणु पक्खुन्भेयभरि तं नगि उड्डाणु खेल्लाहि । ॥१०॥ ॥११॥ 116 11 अच्छइ । पुरणर्षिसन्धिः । ॥ २९९ ॥
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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