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________________ ( १२ ) तस्वबिन्दुः छे. तेथी यतिमां अपेक्षाए सर्व जगत्ना पर्यायो समायछे. तेथी सर्व जगत् यतिमांछे, ज्ञानादिकना पर्यायनी अपेक्षाए एम सिद्ध ठरेछे. ( विशेषावश्यक ) ३८५ सर्व वस्तुओ नैगम, संग्रह, व्यवहाररूप अविशुद्धनयनी अपेक्षार अक्षर [ ध्रुव ] छे. तेमज सर्व वस्तुओ ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ अने एवंभूतनयनी अपेक्षाए क्षर [उत्पाद व्ययरूप अनित्य ] छे. द्रव्यास्तिकनयनी अपेक्षाए सर्व वस्तुओ अक्षर छे, अने पर्यायार्थिकनयनी अपेक्षाए सर्व वस्तुओ क्षर [उत्पाद व्ययरूपछे. [ विशेषावश्यक ] ३८६ अभिधान शक्तिरूप सर्व अभिलाप्य प्रज्ञापनीय पदार्थो छे ते अकारादिक अक्षरना स्वपर्याय जाणवा, पण अनभिलाप्य न जाणवा=अकारना ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत भेद सानुनासिक, निरनुनासिक, उदात्त, अनुदात्त अने स्वरित ए अढार भेद आदि अनंत Faraa जाणवा. अकारअक्षरवाच्यविष्णुप्रमुख अन्य अनंत पदार्थ अस्तित्व संबंधवडे स्वपर्याय जाणवा. इकारादि वाच्य लक्ष्मी आदि पर्यायो अनंतछे ते अकारना परपर्यायछे, नास्तित्व संबंधथी. तेमज इकारना हस्त्रादिक वाच्य अनंत स्त्रपर्याय जाणवा. अने अकारादिकना अनंत स्वपयर्याय ते इकारना परपर्याय नास्तित्व संबंधथी जाणवा. एम सर्वत्र भावना करवी ( विशेषावश्यक. )
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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