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________________ नयनरम्य श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान की 61 इंच की श्वेत वर्णी प्रतिमा बिराजमान है। प्रभुजी की मुखमुद्रा और हाथ के नाखून की अत्यन्त नाजुक कारीगरी दर्शनार्थियों के मन को हर लेती है। (ख) जगमाल गोरधन का जिनालय : श्री आदिनाथ भगवान (31 इंच) श्री नेमिनाथ भगवान के मुख्य जिनालय के ठीक पीछे श्री आदिनाथ भगवान का जिनालय है। इस जिनालय की प्रतिष्ठा पोरवाड ज्ञातीय श्री जगमाल गोरधन द्वारा आ. विजयजिनेन्द्रसूरि महाराज साहेब की पावन निश्रा में वि.सं. 1848 वैशाख वदी 6 शुक्रवार के दिन करवायी गयी थी। श्री जगमाल गोरधन श्री गिरनारजी तीर्थ पर जिनालय के मुनीम का कर्तव्य निभाकर जिनालयों के संरक्षण का कार्य करते थे। श्री नेमिनाथ भगवान जी ट्रंक की प्रदक्षिणा भूमि से उत्तर दिशा की तरफ के द्वार से बाहर निकलते हुए अन्य ट्रंक के जिनालयों में जाने का मार्ग आता है। उसमें सर्वप्रथम काले पाषाण की ऊँची ऊँची सीढियाँ उतरते हुए बायीं तरफ मेरकवशी की ट्रंक आती है। (2) मेरकवशी की टूकः मेरकवशी की ट्रंक के मुख्य जिनालय में प्रवेश करने से पहले दायें हाथ की तरफ 'पंचमेरु' का जिनालय आता है। (क) पंचमेरु का जिनालय : श्री आदिनाथ भगवान ( 9 इंच ) इस पंचमेरु जिनालय की रचना अत्यन्त रमणीय है । इसमें चार तरफ के चार कोने में धातकी खंड के दो मेरु ओर पुष्करार्धद्वीप के दो मेरु तथा मध्य में जंबूद्वीप का एक मेरु इस तरह पाँच मेरुपर्वत की स्थापना की गयी है। जिसमें प्रत्येक मेरु पर चतुर्मुखी प्रतिमायें पधरायी गयी हैं । जिनकी प्रतिष्ठा वि.सं. 1859 में की गयी है ऐसा लेख है । 76 त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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