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________________ (ख) अदबदजी का जिनालय : श्री आदिनाथ भगवान ( 138 इंच) पंचमेरु के जिनालय से बाहर निकलकर मेरकवशी के मुख्य जिनालय में प्रवेश करने से पहले बायें हाथ पर श्री आदिनाथ भगवान की पद्मासन मुद्रा में बिराजमान महाकायप्रतिमा को देखते ही शत्रुजय गिरिराज की नव ढूंक में विराजमान अदबदजी दादा का स्मरण होने से इस जिनालय को भी अदबदजी का जिनालय कहा जाता है। यह प्रतिमा श्यामवर्ण के पाषाण से बनी है और इस पर श्वेतवर्ण का लेप किया गया है। इस मूर्ति की बैठक में आगे 24 तीर्थंकर परमात्मा की मूर्तिवाला पाषाण वि.सं. 1438 में प्रतिष्ठा के एक लेखयुक्त पीला पाषाण है। (ग) मेरकवशी का मुख्य जिनालय : सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ भगवान इस जिनालय के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही छत में विविध कलाकृति युक्त बारीक कारीगरी आश्चर्यकारी लगती है। कारीगरी देखते ही देलवाडा के स्थापत्यों की याद ताजा हो जाती है। इस बावनजिनालय में मूलनायक श्री सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ भगवान हैं, जिनकी प्रतिष्ठा वि.सं. 1859 में प.पू.आ. जिनेन्द्रसूरि महाराज साहेब ने करवायी। इस बावनजिनालय की प्रदक्षिणा भूमि में बायीं ओर से घूमने पर पीले पत्थर में वि.सं. 1442 में खुदवाई गई चौबीश तीर्थंकरों की मूर्तियों वाला अष्टापदजी का पट है। आगे मध्य भाग में जो बडी देवकुलिका आती है, उसमें अष्टापदजी का जिनालय बनाया गया है। जिसमें चत्तारी-अठ-दस-दोय इस तरह चार दिशा में क्रमश: 4-8-10-2 प्रतिमाजी पधराकर अष्टापद की रचना की गई है। वहाँ से आगे मूलनायक के ठीक पीछे की देवकुलिका में श्री महावीर स्वामी बिराजमान हैं। वहाँ से उत्तर दिशा की तरफ आगे बढ़ते हुए प्रत्येक देवकुलिका के आगे की चौक की छत में अत्यन्त मनोहर कारीगरी मन को खुशकारक बनती है। आगे उत्तरदिशा की तरफ, मध्य गिरनार तीर्थ 77
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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