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________________ यह प्रतिमा पूजी गयी थी। यह प्रतिमा रत्नसार द्वारा प्रतिष्ठित होने के बाद 103250 वर्ष तक इसी स्थान पर पूजी जायेगी, ऐसे श्री नेमिप्रभु के वचन होने से पाँचवे आरे के अंत तक यह प्रतिमा यहीं पूजी जायेगी। बाद में शासन देवी अंबिका के द्वारा यह प्रतिमा पाताल लोक में ले जाकर पूजी जायेगी। इस तरह यह प्रतिमा तीनों लोक में पूजी जायेगी। लगभग 84786 वर्ष से यह प्रतिमा इसी स्थान पर बिराजमान है। मूलनायक की प्रदक्षिणा भूमि तथा रंगमंडप में तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमायें तथा यक्ष यक्षिणी एवं गुरु भगवंतों की प्रतिमायें बिराजमान हैं। इस रंगमंडप मे आगे 21 फुट चौडा और 38 फुट लम्बा दूसरा रंगमंडप आता है, जिसके मध्य मे गणधर भगवंतों की लगभग 840 चरण पादुका की जोड अलग अलग दो पबासण पर स्थापित की गया है। इनकी प्रतिष्ठा वि.सं. 1694 चैत्र वदी दूज के दिन की गयी है। आस पास तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमायें बिराजमान की गयी हैं। इस जिनालय के बाहर प्रदक्षिणा भूमि में पश्चिम दिशा से शुरु करते हुए वि.सं. 1287 में प्रतिष्ठा किए हुए नंदीश्वर द्वीप का पाट, जिनप्रतिमायें, पद्मावती की मूर्ति, सम्मेतशिखरजी तीर्थ का पाट, शत्रुजय तीर्थ का पाट, श्री नेमिनाथ परमात्मा के जीवन चरित्र का पाट, श्री महावीर स्वामी की पाटपरंपरा की चरण पादुका, जिनशासन के विविध अधिष्ठायक देव-देवी की प्रतिमा, शासन देवी अंबिका की देवकुलिका, श्री नेमिनाथ तथा श्री महावीर प्रभु की चरण पादुका, श्री विजयानंद सूरिश्वर (पू. आत्मारामजी) महाराज की प्रतिमा आदि स्थापित की गयी हैं। प्रदक्षिणा भूमि के एक कमरे में श्री आदिनाथ भगवान, साध्वी राजीमतीश्री आदि की चरण पादुका तथा गिरनार तीर्थ का जीर्णोद्धार करने वाले प.पू.आ. नीतिसूरि महाराज की प्रतिमा बिराजमान है। उसी कमरे में एक भूगर्भ में मूलनायक के रूप में संप्रतिकालीन, प्रगट प्रभावक अत्यन्त गिरनार तीर्थ
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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