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________________ गुरू से आज्ञा लेकर, सूर्य जैसे एक बादल में से दूसरे बादल में जाता है वैसे ही, एक स्थल से दूसरे स्थल को एकाकी विहार करते हुये, वे एक अटवी में आ पहुँचे। प्रतिमा धारण किए और अनुपम संयम वाले उन महर्षि को पूर्व भव में पक्षी रहे जीव ने, जो वर्तमान में भील बना था, इस अटवी में देखा। देखते ही पूर्वजन्म के वैर के कारण उसे क्रोध उत्पन्न हुआ। इससे वह अल्पबुद्धि वाला अपने भाग्य के अनुसार उस मुनि को लकड़ी और चूंसे आदि से मारने लगा। उसके द्वारा दी गई इस घोर यातना से पीड़ित मुनि, में क्रोधरूपी अग्नि प्रकट हुई। जिससे तुरंत ही घात करने की इच्छा से उन्होंने उस भील पर तेजोलेश्या फेंकी। उसके फलस्वरूप आग में जैसे काष्ठ जलता है वैसे ही वह जंगली भील जल गया। वहाँ से मरकर उसका जीव उसी वन में केसरी सिंह के रूप में अवतरित हुआ। इधर विहार करते-करते त्रिविक्रम मुनि एक बार फिर उसी वन में आ गए। मुनि ने देखा कि पूर्वजन्म के वैर से प्रेरित वह केसरीसिंह तुरन्त ही उनकी ओर मारने दौड़ा। भयंकर क्रोध वाले उस सिंह ने जब उन महात्मा को अत्यधिक त्रास दिया, तब दारूण क्रोध के वश होकर, उन्होंने उस सिंह पर तेजोलेश्या फेंकी। उस लेश्या से केसरी सिंह तत्काल मृत्यु को प्राप्त हुआ और पुनः उसी वन में बाघ बनकर उत्पन्न हुआ। वे राजर्षि फिर एक बार उस वन में आए और स्थिरतापूर्वक कायोत्सर्ग कर खड़े हो गए। उस स्थान पर वह बाघ आया और पूर्व वैर के चलते उन पर झपटा। अखंड ज्ञान संपत्ति के स्वामी, ऐसे साधु भगवंत भी जब अपने चित्त में अत्यन्त क्रोध प्राप्त करते हैं, तो अन्य सामान्य जीवों की तो बात ही क्या? इस बार भी मुनि के तपरूपी शस्त्र से अर्थात् मुनि द्वारा फेंकी गई तेजोलेश्या से वह बाघ मर कर किसी भयंकर वन में साँड के रूप में अवतरित हुआ। दैवयोग से उसी वन में आकर मुनि ने कायोत्सर्ग किया। उन्हें देखकर पूर्व वैर के कारण साँड ने बहुत उपद्रव करना आरंभ किया। अंत में मुनिराज को जब अपने जीवन के विषय में भी संशय होने लगा तो उन्होंने पूर्व की भांति इस साँड को भी यमराज का अतिथि बना दिया। तत्पश्चात् इस साँड 26 त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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