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________________ का जीव मृत्यु के बाद अवंति देश में उज्जयिनी नगरी के निकट रहे सिद्धवट की कोटर में महाविषैला सर्प बना । अनुक्रम से विहार करते-करते त्रिविक्रम मुनि वहाँ आकर उस वट के नीचे कायोत्सर्ग ध्यान में स्थित हो गए। उस समय मुनि को देखते ही पूर्व वैर के कारण सर्प को उन पर बहुत द्वेष उत्पन्न हुआ। वह दुष्ट हृदय वाला सर्प तत्काल फण उठाकर अपने पूर्व जन्म के अपकारी मुनि को डसने आया । तब उस सर्प पर तेजोलेश्या फेंकी और वह जलकर मर गया। अकाम निर्जरा के योग से कई कर्मों का अन्तकर सर्प का जीव वहाँ से किसी गरीब ब्राह्मण के घर पुत्र रूप में अवतरित हुआ। जिस गाँव में सर्प का जीव ब्राह्मण पुत्र बना था, उसी गाँव में विहार करते-करते, त्रिविक्रम राजर्षि भी आ पहुंचे। गाँव के पास योगाभ्यास में तत्पर रहे मुनि को देख घूमते-घूमते वहाँ आया वह अधम ब्राह्मण मुनि को मारने दौड़ा मुनि को निर्दयता से मुट्ठियों और लकड़ी से पीटते उस ब्राह्मण को पहले के समान ही क्रोधावेश में उन राजर्षि ने तेजोलेश्या फेंक मार डाला। कुछ शुभ कर्मों के उदय और अकाम निर्जरा से कुछ कर्मों का अन्त हो जाने से उस ब्राह्मण का जीव वाराणसी नगरी में महाबाहु नामक राजा बना । परम ऐश्वर्य की समृद्धिपूर्ण लीलाओं में सदा आसक्त चित्त रहने वाले उस राजा को राज सुख भोगते बहुत समय बीत गया। तब वे राजसुख त्याग संयम धारण करते है । इधर त्रिविक्रममुनि विचरण करते हुए शत्रुंजयगिरि पर पहुंचे। वहाँ भक्तिपूर्वक आदिनाथ प्रभु का स्मरण कर साधना में लीन हो अपने मन को शांत कर पूर्व किये कर्मों का प्रायश्चित्त कर सिद्ध हुए । ३. भरत बाहुबली की कथा आदिनाथ प्रभु के पुत्र भरत व बाहुबली दोनों ही पराक्रमी व शूरवीर थे । कारणवश दोनों के विचारों में मतभेद आ गया तदुपरान्त युद्ध की स्थिति बन गई । भरत राजा स्नेह तथा कोप के वशीभूत हो कुछ विचार कर आदर सहित अपने मुख्यमंत्री से कहने लगे, 'एक तरफ वह मेरा अनुज शत्रुञ्जय तीर्थ 27
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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