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________________ जो फणामण्डप बनाया था वह ध्यानस्थ अवस्था के समय की बात है। परन्तु कमठ के जीव द्वारा किये गये उपसर्ग के दूर हो जाने पर तथा शम्बर देव द्वारा पार्श्वनाथ के चरणों में नमस्कार करने और अपने अपराधों की क्षमायाचना करने के बाद धरणेन्द्र ने पार्श्वनाथ के ऊपर से स्वनिर्मित फणामण्डप को भी हटा लिया होगा। उसी के बाद फणामण्डप रहित अवस्था में पार्श्वनाथ को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था। अतः केवलज्ञान सहित अथवा अर्हन्त अवस्था को प्राप्त पार्श्वनाथ की मूर्ति में फणामण्डप बनाने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। १३. पद्मावती के सिर पर पार्श्वनाथ की मूर्ति का औचित्य वर्तमान में पद्मावती देवी की जितनी मूर्तियाँ पाई जाती हैं उन सब के सिर पर भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान रहती है। यह भी एक परम्परा की बात है। यहाँ विचारणीय बात यह है कि क्या पद्मावती के सिर पर पार्श्वनाथ की मूर्ति को विराजमान करना आगम सम्मत है। ऐसा माना जाता है कि उपसर्ग के समय पद्मावती ने पार्श्वनाथ को उठाकर अपने सिर पर बैठा लिया था। इसी मान्यता के आधार पर अपने सिर पर भगवान् पार्श्वनाथ को बैठाये हुए पद्मावती देवी की मूर्तियों के निर्माण की परम्परा पता नहीं कब से प्रचलित है और किसके द्वारा प्रचलित की गई? यह सब विचारणीय है। जैनागम में स्पष्ट विधान है कि स्त्री को साधु या मुनि से सात हाथ दूर रहना चाहिए। जैनागम के ऐसे विधान के होते हुए भी पद्मावती के सिर पर भगवान् पार्श्वनाथ को बैठाने का औचित्य सिर्फ उपसर्ग के समय माँ पद्मावती द्वारा पार्श्व की रक्षा है। ऐसे समय में उनका सिर पर बैठना गलत नहीं हो सकता। यहाँ यह स्मरणीय है कि आचार्य समन्तभद्र ने स्वयम्भूस्तोत्र में भगवान् पार्श्वनाथ के स्तवन में उपसर्ग निवारण के लिए धरणेन्द्र का नाम तो लिया है किन्तु वहाँ पद्मावती का नाम कहीं नहीं है। आचार्य गुणभद्र 114 त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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