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________________ अष्टमपरिच्छेद. ६०१ दोनों पक्षोंके वृद्ध वस्त्रालंकार तांबूलदान देना इति विवादारंजः ॥ पीछे कोरे शरावलोंमें यव बोवने । पीछे कन्या के घरमें मातृस्थापना, और षष्ठी स्थापना, षष्ठी पूजनविधिके प्रकारसें करना । वरके घरमें मातृ स्थापन, और कुलकरस्थापन करना । परमतमें गण पति, कंदर्प स्थापन करते हैं. सो सुगम, और लोक प्रसिद्ध है. ॥ कुलकर स्थापन विधि कहते हैं. ॥ गृहस्थ गुरु भूमिपर नहीं पडे गोमय (गोबर) करके लीपी हुई भूमिमें, स्वर्णमय, रूप्यमय, ताम्रमय, वा श्रीप काष्ठमय, पट्टा, स्थापन करे । पट्टकस्थापन मंत्रः ॥ ॐ आधाराय नमः आधारशक्तये नमः । इस मंत्र करके एकवार मंत्रके पट्टेको स्थापन करके, तिस पट्टेको अमृतामंत्रकरके तीर्थजलोंसें निषिंचन करके । पीछे चंदन, अक्षत, दूर्वाकरके पट्टेको पूजे. । पीछे खादिमें. " 66 ॥ ॐ नमः प्रथमकुलकराय, कांचनवर्णाय, श्या मवर्ण चंद्रयशः प्रियतमासहिताय, हाकारमात्रोच्चा रख्यापितन्याय्यपथाय, विमलवाहनानिधानाय, श्ह विवाह महोत्सवादौ श्राग २, इह स्थाने तिष्ट २, सन्निहितो जव २, देमदो नव १, उत्सवदो जव २, आनंददो जव २, जोगदो जव २, कीर्तिदो जव २,
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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