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________________ ६‍ जैनधर्मसिंधु. अपत्यसंतानदो जव २, स्नेहदो जव २, राज्यदो जव २, इदमर्घ्यं पाद्यं बलिं चर्चा आचमनीयं गृहाण २, सर्वोपचारान् गृहाण ॥ " २, पीछे ॥ ። ॥ गंधं नमः । ॐ पुष्पं नमः । ॐ धूपं नमः । ॐ दीपं नमः । ॐ उपवीतं नमः । ॐ भूषणं नमः । ॐ नैवेद्यं नमः । ॐ तांबूलं नमः ॥ "" पूर्वोक्त मंत्रकरी आव्हान संस्थापन करके, इस मंत्र से अर्घ्य, पाद्य, बलि, चर्चा, श्राचमनीय, दान देवे. यह बोटे मंत्रोंसें गंधके दो तिलक, दो पुष्प, दो धूप, दो दीप, एक उपवीत, दो स्वर्णमुद्रा, दो नैवेद्य, दो तांबूल, चढावे. ॥ १ ॥ पीछे दूसरे स्थानमें ॥ " ॥ ॐ नमो द्वितीयकुलकराय, श्यामवर्णय, श्या मवर्णचंद्रकांता प्रियतमासहिताय, हाकारमात्रख्या पितन्याय्यपथाय, चक्षुष्मदनिधानाय ॥” शेषं पूर्ववत् ॥ २ ॥ “ ॥ ॐ नमस्तृतीयकुलकराय, श्यामवर्णाय, श्याम वर्णसुरूपा प्रियतमास हिताय माकारमात्रख्यापितन्या य्यपथाय यशस्वा निधानाय ॥ " ॥ शेषं पूर्ववत् ॥ “ ॥ ॐ नमश्चतुर्थकुलकराय, श्वेतवर्णाय, श्याम वर्णप्रतिरूपा प्रियतमास हिताय, माकरमात्रख्यापित न्याय्यपथाय, अनिचंद्रा निधानाय ॥ " शेषं पूर्ववत् ॥ “ ॥ ॐ नमः पंचमकुलकराय, श्यामवर्णाय, श्या मवर्णचकुः कांता प्रियतमास हिताय, धिक्कारमात्रख्या
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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