SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 680
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४६ जैनधर्मसिंधु. स्तवसंयुक्त शक्रस्तव पाठ करे। तिस दिनमें, जल जवान्न नोजन करके आचाम्लका प्रत्याख्यान उपनेयको करावे । तदपी उपनेयको वामे पासे स्थापके सर्वतीर्थोदकोंकरके अमृताजलमंत्रकरके कुशागोंसे सिंचन करे.।। तदनंतर परमेष्ठिमंत्र पढके. " नमोऽर्हत्सिझाचार्योपाध्यायसर्वसाधुन्यः" ऐसा कहके, जिन प्रतिमाके आगे उपनेयको पूर्वाभिमुख बैगवे; तदपी गृहीगुरु, चंदनमंत्रकरके अनिमंत्रण करे. ॥ चंदनमंत्रो यथा ॥ __“॥ ॐ नमो जगवते. चंप्रनजिनेसाय, शशांक हारगोदीरधवलाय, अनंतगुणाय, निर्मलगुणाय, जव्यजनप्रबोधनाय, अष्टकर्ममूलप्रकृतिसंशोधनाय, केवलालोकावलोकितसकललोकाय, जन्मजरामरण विनाशनाय सुमंगलाय, कृतमंगलाय, प्रसीद जग वन् श्ह चंदनेनामृताश्रवणं कुरु २ स्वाहा ॥" इस मंत्रकरके चंदनको मंत्रके हृदयमें जिनो पवीतरूप, कटिमें मेंखलारूप और ललाटमें तिल करूप, रेखाकरे, तदपी उपनेय " नमोस्तु २ ऐसे कहता हुश्रा, गुरुके चरणोंमें पलके खमा होके हाथ जोडके ऐसें कहै.। “॥नगवन् वर्णरहितोऽस्मि । श्राचाररहितोऽस्मि । मंत्ररहितोऽस्मि । गुणरहितोऽस्मि । धर्मरहितोऽस्मि।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy