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________________ जैनधर्मसिंधु. रमातस्त्वमप्याहारय आहारं तत्ते दीर्घमायुरारो ग्यमस्तु अह ॥” ___ यह मंत्र तीनवार पढे । तदपी साधुयोंको षट् विकृतियांकरके षट्रससंयुक्त आहार देवे, यति रुके मंगलीपट्टोपरि परमान्नपूरित सुवर्णपात्र चढावे, गृहस्थगुरुको जोण जोण प्रमाण सर्वजातका अन्न दान करे, । तुला २ प्रमाण सर्व घृत, तैल, गुड लवणादि दान करे, । सर्वजातके एक सौ आठ फल देवे, । तांबेकाचरु, कांसेका थाल, और वस्त्रयु गल देवे. । सर्वजातिके अन्न, सर्वजातिके फल, सर्व विकृतियां, वर्ण, रूप्य, ताम्र, काश्य, श्नोंके पात्र (नाजन) इतनी वस्तुयाँ इस संस्कारमें चाहिये.॥ इति नवमानप्राशनसंस्कार विधिः अथ दशमं कर्णवेधसंस्कारविधि ॥ उत्तरात्रय, हस्त, रोहिणी, रेवती, श्रवण, पुनर्वसू मृगशीर्ष, पुष्य, श्न नदात्रोंमें । रेवती श्रवण, हस्त, अश्विनी, चित्रा, पुष्य, धनिष्ठा, पुनर्वसू, अनुराधा, चंजसहित श्न नक्षत्रोंमें कर्णवेध करना, ।लान ११, तृतीय ३, घरमें शुन ग्रहोंकरके संयुक्त होवे, शुन राशि लग्नमें क्रूर ग्रहोंकरकेरहित बृहस्पतिके लग्ना धिप, वा लग्नमें हुए कर्णवेध करणा. जिसमें चंड नक्षत्र, पुष्य, चित्रा, श्रवण, रेवती, जानने.। मंग
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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