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________________ श्रष्ठमपरिवेद. ६५ ॥अथदीराशननामा पांचमा संस्कारं ॥ तिसही जन्मसें तीसरेदिन, चंडसूर्यके दर्शनके दिन मेंही, बालकको दीराशनसंस्कार करना । तद्यथा । पूर्वोक्त वेषधारी गुरु, अमृतमंत्रकरके एकसौ आठ वार मंत्रित तीर्थोदकसे बालकको, और बालककी माताके स्तनोंको अनिषेक करके, माताकी गोदी (अंक) में स्थित बालकको दूध पावे. पूर्णांगना शिकासंबंधि स्तन्य पहिला चुंघावे, स्तन्य (दूध) पीते हुए बालकको गुरु श्राशीर्वाद देवे ॥ यथा वेदमंत्र ॥ “॥ ॐ अई जीवोऽसि । आत्माऽसि । पुरुषोऽसि। शब्दशोऽसि । रूपज्ञोऽसि।रसझोऽसि । गंधज्ञोऽसि । स्पर्शज्ञोऽसि । सदाहारोऽसि।कृताहारोऽसि । अन्य स्ताहारोऽसि। कावलिकाहारोऽसि । लोमाहारोऽसि । औदारिकशरीरोऽसि । अनेनाहारेण तवांगं वर्कतां । बलं वळतां । तेजोवळतां । पाटवं वर्षतां । सौष्ठवं वर्कतां पूर्णायुर्जव । अहँ ॐ ॥” इस मंत्रकरके तीन वार आशीर्वाद देवे ॥ अमृतमंत्रो यथा ॥ "" ॥ अमृते अमृतोनवे अमृतवर्षिणि अमृतं . श्रावय २ स्वाहा ॥" इति दीराशनसंस्कार विधिः ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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