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________________ जैनधर्मसिंधु. " ॥ अथ श्री शोल सतीनो बंद ॥ ॥ यदि नाथ आदिजिनवर बंदी, सफल मनो रथ की जियें ए ॥ प्रातें उठी मांगलिक कामें, शोल सतीनां नाम लीजियें ए ॥ १ ॥ बाल कुमारी जग हितकारी, ब्राह्मी जरतनी बड़ेनमी ए ॥ घट घट व्यापक अक्षर रूपें शोल सतीमांहि जे मी ए ॥ ॥ २ ॥ बाहुबल जगिनी सतीय शिरोमणि, सुंदरी नामे रिषन सुता ए ॥ अंग स्वरूपी त्रिभुवनमांदे, जेह अनुपम गुणजुता ए ॥ ३ ॥ चंदनबाला बाल पणाथी, शीयलवती शुद्ध श्राविका ए ॥ श्रदनां बाकुलां वीर प्रतिलच्या, केवल लही व्रत जाविका ए ॥ ४ ॥ उग्रसेन धुच्या धारिणी नंदनी, राजिमती नेम वल्लजा ए || जोबन वेशें कामने जीत्यो, संयम लेइ देव डुलाए ॥ ५ ॥ पंच जरतारी पांव नारी, डुपदतनया वखाणी यें ए ॥ एक शो आठे चीरपूरा णां, शीयल महिमा तस जाणीयें ए ॥ ६ ॥ दशरथ नृपनी नारी निरुपम, कौशल्या कुलचंडिका ए ॥ शीयल सलूणी राम जनेता, पुण्य तणी परनालिका ए ॥ ७ ॥ कोशंबिक में संतानिक नामें, राज्य करे रंग राजीयो ए ॥ तस घर घरणी मृगावती सती, सुरनुवनें जश गाजीयो ए ॥ ८ ॥ सुलसा साची शीयलें न काची, राची नहीं विषयारसें ए ॥ मुख कुं जोतां पाप पलाए, नाम लेतां मन उल्लसे ए ॥ ४८६
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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