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________________ शष्ठमपरिवेद. ४७ ॥ ए॥ राम रघुवंशी तेहनी कामिनी, जनकसुता सीता सती ए ॥ जगसढ जाणे धीज करंतां, अनल शीतल थयो शीयलथी ए ॥ १० ॥ काचे तांतणे चालणी बांधी, कूवाथकी जल काढीयु ए ॥ कलंक उतारवा सतीय सुजना, चंपा बार उघामीयु ए ॥ ११॥ सुरनर वंदित शीयल अखं मित, शिवा शिव पदगामिनी ए ॥ जेहने नामें निर्मल थश्ये, बलि हारी तस नामनी ए १५ ॥ हस्तिनागपुरें पांमुरायनी, कुंता नामें कामिनी ए॥ पांमव माता दसे दसारनी, बहेन पवित्रता पद्मनी ए ॥ १३ ॥ शीलवती नामे शीलव्रतधारिणी, त्रिविधतेहने वंदीयें ए ॥ नाम जपंतां पातक जाए, दरिसण छरित निकंदीयें ए ॥ १४ ॥ निषधा नगरी नलहनरिदनी, दमयंती तस गेहनी ए, ॥ संकट पमतां शीयलज राख्यु, त्रिजुवन कीर्ति जेहनी ए ॥ १५ ॥ अनंग अजीता जगजन पूजिता, पुष्पचूला ने प्रजावती ए ॥ विश्वविख्याता कामित दाता, शोलमी सती पदमा वती ए॥१६॥ वीरेंजोखी शास्त्रे साखी, उद यरतन नांखे मुदा ए॥ वहाणुं वातां जे नर नणशे, ते लेशे सुख संपदा ए ॥ १७ ॥ इति ॥ ॥अथ श्री नवकार लघु बंद ॥ ॥सुखकारण नवियण, समरो नित्य नवकार ॥ जिनशासनश्रागम, चौद पूरवनो सार ॥ ए मंत्रनो
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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