SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 518
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्मसिंधु. ४४ रीत जप्यो विषधर विष टाले, ढाले अमृतधार ॥ सो ॥ ६ ॥ बीजोरा कारण राय महाबल, व्यंत र पुष्ट विरोध ॥ जेणें नवकारें हत्या टाली, पाम्यो यद प्रतिबोध ॥ नवलाख जपंतां थाये जिनवर, इस्यो ने अधिकार ॥ सो० ॥ ७॥ पबिपति शिख्यो मुनिवर पासे, महामंत्र मन शुद्ध ॥ परजव ते राज सिंह पृथवीपति, पाम्यो परिगल रिछ॥ ए मंत्रथकी अमरापुर पहोतो, चारुदत्त सुविचार ॥ सो॥6॥ संन्यासी काशी तप साधंतो, पंचाग्नि परजाले ॥ दीगे श्रीपास कुमारे पन्नग, अधबलतो ते टाल ॥ संजलाव्यो श्रीनवकार स्वयंमुख, इंअनुवन अवतार ॥ सोगाणामनशुळं जपतां मयणा सुंदरी, पामी प्रिय संयोग॥श्ण ध्याने कुष्ठ टक्यो जंबरनो, रक्त पित्तनो रोग ॥ निश्चें शुं जपतां नवनिधि थाये, धर्म तणे श्रा धार॥सो ॥ १० ॥ घटमांहि कृष्ण नुजंगम घाल्यो, घरणी करवा घात ॥ परमेष्ठि प्रनावे हार फूलनो, वसुधामांहि विख्यात ॥ कमलावतीयें पिंगल कीधो, पापतको परिहार ॥ सो० ॥ ११॥ गयणांगण जाति राखी गृहिणी, पामीबाणप्रहार ॥पद पंच सुणतां पांडु पति घर, ते थई कुंता नार॥ए मंत्र अमूलक महिमा मंदिर. लवकुखनंजणहार॥सो० ॥१॥ कंबल संबलें कादव काढ्यां, शकट पांचशें मान ॥ दीधे नवकारें गया देवलोकें, विलसे श्रमर विमान ॥ ए मंत्रथकी
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy