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________________ प्रथमपरिछेद. बोदियाणं ॥ ५ ॥ धम्मदयाणं, धम्मदेसिया णं ॥ धम्मनायगाणं, धम्मसारदीणं, धम्मवर चारंतचक्कवट्टीणं ॥ ६ ॥ अप्पमिदयवर नाणदंसणधराणं, विट्ठ बनमाणं ॥ ७ ॥ जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुझाणं बोदयाणं, मुत्ताणं मोगाणं ॥ ८ ॥ . सवन्नणं सवदरिसिणं, सिव मयल मरु मांत मरक य मधाबाद मपुारा वित्ति | सिद्धि गइ नाम धेयं ॥ ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअ न याणं || || जे अई जे सिद्धा ॥ जे विस्संति सागर काले | संपइ वट्टमाणा ॥ स तिवि वंदामि ॥ १० ॥ इति ॥ १३ ॥ ॥ १४॥ अथ जावंति चेइआई ॥ ॥ जावंति चेइच्याई ॥ उट्टे देय तिरि अलोए ॥ सव्वाई ताई वंदे ॥ इदसंतो तब संताई ॥ १ ॥ इति ॥ १४ ॥ - थ जावंत केवि साहू ॥ ॥ जावंत केवि साढू ॥ जरदेवय मादा विदे दे ॥ सधेसिंतेसिं पण ॥ तिविदेण तिदं ड विरयाणं ॥ १ ॥ इति ॥ ॥१५॥ G
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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