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जैनधर्मसिंधु.
मुदरिपास द रिप्रखंण ॥ अवर विदेदिं तिचयरा ॥ चिहुं दिसि विदिसि जिंकेवि ॥ ती प्रणाय संपश्य ॥ वंड जि सधेवि ॥ ३ ॥ सत्ताणवर सदस्सा || लंका बप्पन्न अवको डि
॥ बत्तीस बासिच्चाई | तिलोए चेइए वंदे ॥ ४ ॥ पनरस कोमि सयाई ॥ कोमी बायाल लरक प्रवन्ना ॥ बत्तीस सहस सिखाई ॥ सासयबिंबाई पणमामि ॥ ५ ॥ इति ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ अथ जंकिंचि ॥
॥ जं किंचि नाम तिचं ॥ सग्गे पायालि मा से खोए || जाई जिए बिंबाई || ताई सवा इं वंदामि ॥ १ ॥ इति ॥ १२ ॥
॥ १३ ॥ अथ नमुचुणं वा शक्रस्तव ॥ ॥ नमुनृणं अरिहंताणं, भगवंताणं ॥ १॥ आइगराणं, तिच्चयराणं, सयं संबुदाणं ॥ २ ॥ पुरिसोत्तमाणं, पुरिससीदाणं पुरिसवरपुंगरी आणं, पुरिसवरगंधदवीणं ॥ ३ ॥ लोगोत्तमा णं, लोगनादाणं, लोग दियाणं, लोगपई वाणं, लोगपको अगराणं ॥ ४ ॥ जयदया णं, चकुदयाणं ॥ मग्गदयाणं, सरणदयाणं,