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________________ ט जैनधर्मसिंधु. ॥ १६ ॥ अथ परमेष्ठिनमस्कार ॥ ॥ नमोऽर्हसि धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः ॥ इति ॥ १६ ॥ ॥१७॥ चप्रथ उपसर्गदरस्तवन ॥ ॥ नवसग्गहरं पासं ॥ पासं वंदामि कम्म घणमुक्कं ॥ विसदर विसनिन्नासं ॥ मंगलक लावासं ॥ १ ॥ विसदरफुलिंगमंतं ॥ कंठे धारेइ जो सया मणु ॥ तस्स गहरोगमा री जरा जंति नवसामं ॥ २ ॥ चिन दूरे मंतो ॥ तुन पण मोवि बहुफलो होइ || नर ति रिएवि जीवा ॥ पावंती न डुक दोहग्गं ॥ ३॥ तुद सम्मत्तेल दे ॥ चिंतामणि कप्पपायवप्न दिए ॥ पावंति विग्धेां ॥ जीवा यरामरं ठाणं ॥ ४ ॥ इ संयु महायस ॥ जत्तिनरनिनिरे दिए || ता देव दिऊ बोहिं नवे नवे पास जिणचंद ॥ ५ ॥ इति ॥ १७ ॥ ॥ १८ ॥ अथ जयवीराय ॥ जय वीराय जगगुरु ॥ दोन मम तुह पनावर्ज जयवं ॥ नवनिवे मग्गा ॥ णु सारि आइ फलसिद्धि || १ || लोगविरुधच्चान ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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