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________________ जैनधर्मसिंधु. राग माढ ताल पंजाबी __ अजिहो कहो ज्ञानी, कोठे थांको देश ॥ साची तो कहोने ॥ कोहे ॥ एटेक ॥ जन्म लियो तबहो झानी, जुरा होता केस ॥ स्याश्की सपेदी आई ॥ अज हुँ क्युं नहिचेत ॥१॥ कोहे ॥ कोठेका संगाती तुम ॥ हे आया एक ॥ कहिने जावोला हो ज्ञानी ॥ नमता एका एक ॥२॥ कोहे॥ सुखमे संगाती घणा ॥ मुखमेन एक ॥था हिपचो जो ज्ञानी ॥ नीका कर देख ॥ ३ ॥ को ॥ धर्म तो संगातीसाचो ॥ जुहातो अनेक ॥ अमीचंद साहेब ने समरो ॥ राखे थांकीटेक ॥४॥ को ॥ इति ॥ जजनी पद जिन रायानां दरिसन पायारे ॥ नलेजले जिनं द गुण गाया ॥ तने वंदेडे सुरनररायारे ॥॥ तुने बं द्याथी गुणीमां गणायारे ॥ ज ॥ एटेक ॥ अश्वसेन नृपनंदन राया ॥ वामाराणीनां जो जाया ॥ चिंताम णीजी प्रत्नु चिंता चूरोने ॥ नवनवनी नावठहरा यारे ॥ न ॥१॥ स्वप्नाना सुखने अननी बाया ॥ एवी संसारनी ने माया ॥ एवो उपदेश के साचो तुमारो पण ॥ से जगत नरमाया रे ॥२॥नले ॥ जिणंद वाणी अमीय समाणी ॥ साची जाणे डे जवि प्राणी ॥ बास बसतो नवि गंडी देजो ने तुमे ॥ माखण लेजो तांणीरे ॥३॥ जले ॥ धन्य
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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