SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थपरिच्छेद . ३५७ क्लेस नासे ॥ आलस नावे अंग ॥ २ ॥ गोमी ॥ पोढंता प्रभुनाम लीजें ॥ आणी मन उबरंग ॥ अ जय ने नींद माहे ॥ कदिय न होवे चित्त जंग ॥ ३ ॥ गोमी ॥ इति ॥ तुमरी सकल मर्म मल दय करके मुगत पुर गए गए रे ॥ मु ॥ टेक ॥ अविनाशी विकार हे ॥ परमातम शिव धामरे ॥ समाधान सर्वांग अरुपी ॥ मेरेमन रहेरदे रे ॥ १ ॥ स ॥ शुद्ध बुद्ध विहे ॥ रहे अनादि अनंत ॥ वीरप्रभुके आगे गौतम ॥ अमृ त पद लहे लहेरे ॥ २ ॥ स ॥ इति ॥ वैरागी पद कहा कीनो नर जब पाके ॥ रहा मोहमद बाके ॥ टेक ॥ वृद्ध अवस्था आयलगी तब ॥ बेठो बुद्धि गुमाके ॥ क ॥ जुठ बोल धन जोम लीयो दे ॥ जो ले जीवनकों समजाके ॥ कुमतीनार संग राच रह्यो हे ॥ सुमती गुनको नसाके ॥ २ ॥ क ॥ मात तात सुता सुत नारी ॥ इनसे नेड़ लगाके ॥ ए सब पने घरों वे ॥ तेरी देह जलाके ॥ ३ ॥ क ॥ सतगुरु कहे पर जब सुख करले ॥ चरनन चित्त लगा के ॥ छात्र सुनले फिर कोन सुनावे ॥ श्रवनन सुद्ध कराके ॥ ४ ॥ ॥ इति ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy