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________________ चतुर्थपरिवेद. ३एए सफल दिन आज घमिपल ॥ आजनी सुकृत कमा णी॥ वीर्य जहास विनानी जे करणी ते ॥ पाणी मां जेम लींटी तांणीरे ॥४॥ नवे ॥ साचीतो वा णी तेणेज जाणी ॥ जेणे करी ते प्रमाणी ॥ अक्षय ज्ञान मुनी स्पर्श ज्ञानविण ॥ बीजुं बधुं धुल धाणी रे ॥५॥ नले ॥ इति ॥ ॥ श्रीशांति नाथजी स्तवनं ॥ तुज्यं नमस्ते स्वामी ॥ शांति जिनंदाजी ॥ दृग देखे परमानंदा, ॥ मुख पुनमचंदाजी॥शां ॥ एटे क ॥ जन्मे प्रजु शांति सुधारी ॥ जग मरी निवारी जी ॥प्रनु शांति नाम हितकारी ॥मेंने सेवा धारी जी॥१॥ तुज्यं ॥ तुम विना कोन हे मेरा ॥ तुं साहब हेराजी ॥ हरो मिथ्या रोग अंधेरा ॥ हहो जव फेराजी ॥२॥ तुज्यं ॥ तुम दीन दयालाजी ॥ शासनके लालाजी ॥ मे सदा जपुं जप माला ॥ घर खेम खयालाजी॥३॥तुज्यं ॥ तुम कल्पवृक्ष हित कारी॥ चिंतामन धारीजी ॥ प्रन्नु आतम शरण तु मारी॥द्यो हमे सुधारीजी ॥ अब खुसी तुमारीजी ॥ ॥४॥ तुज्यं ॥ इति ॥ तुमरी वीर प्रजुजी तेरी दोस्तिमे ॥ मेरी समता सखी मे रबान नरे॥ एटेक ॥ आप न श्राए बोध पढाए॥ तेरी सुरतपर कुरवान नरे॥१॥ वीर ॥ शासन
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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