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________________ ३५६ जैनधर्मसिंधु. निवारे, उतारे जवपार ॥ अक्षय ज्ञान प्रचारक मं डल || वंदेवारंवार ॥ ४ ॥ रागणी बरवा ॥ अरे दहि माहरी तुरकवाने घेर लई ॥ एराद ॥ प्रजुदीजें दरस बनी देर नई ॥ टेक ॥ लखचो रासी फेरा फिरतां ॥ दुःखसहन करे मेनें केइ केई ॥ १ ॥ प्र ॥ जवजव जटकत सरहुं आयो | अब तो राखो समकित दान दई ॥ २ ॥ प्र ॥ पुना जैन गायक मंगली तो ॥ अक्षय ज्ञान पद चाहाय रही ॥ ३ ॥ प्र ॥ ठुमरी ॥ हजारों मेरे कान के मोती ॥ एराह ॥ प्रभु मेरो ज्ञानकी ज्योती ॥ मानों सूर्यकिरण कोटी ॥ टेक ॥ घटघट व्यापक ज्ञान कला बे, निजगुणता मोटी ॥ १ ॥ प्र ॥ अनंत गुणीनां गुणनी गणना ॥ करवी ते खोटी ॥ २ ॥ ॥ ए प्रजुने तो रूप न रे खा, वर्णादिक नोती ॥ २ ॥ प्र ॥ गुणीयनकों जजते गुणी होवे ॥ केवलता मोटी ॥ ४ ॥ ॥ अक्षयज्ञान दशा प्रगटावे ॥ कर्ममलीन धोती ॥ ५ ॥ इति ॥ राग गोमी गोडी गाइयें मनरंग ॥ एटेक ॥ एक ध्याने एक ताने || कर केदारो संग ॥१॥ गोमी ॥ यात्रा कीजे अमृत पीजे ॥ नीर वहे जिम गंग ॥ रोग शोक जय
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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