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________________ २५६ जैनधर्मसिंधु नी ललाट ( कपाल ) पर लगाना उस्को "मुक्ता शुक्ती” मुसा कहतें हे ( यह मुसा जय वीयराय कहती बख्त की जाती हे) जगवंतकों नमस्कार करके मंदिजीसे बहार निकल ती बख्त "श्रावस्सही" एशा उच्चार करके निकले. फिर घर जायके अपने ना मित्रोंको साथ लेके जदय अनदयका (विचारवाला) जोजन करे . ( पग धोया सिवाय, क्रोधांध होके, पुर्वचन बोल ता ददीण दिशाके सन्मुख बेठके जोजन करेसो रा दस जोजन कहा जाताहे. पवित्र वस्त्र और शरीरसें अबे स्थानपर बेहके स्थि रतासें देव गुरुको याद करके, जोजन किया जाय सो मानुष्य जोजन गिना जाताहे. स्नानादिकसें श रीर शुरू करके, जिनपूजाकरके पूज्य जनो ( माता पिता) को प्रसन्न करके, मुनिजनोंकों और सत्पात्रों कों दानादिक देके पीछे नोजन किया जाय. सो उत्तम जोजन गिना जाताहे. जोजन, मैथुन, वमन(कय उलटी) दातण, लघु नीति, वडीनीति (कामा पेसाब ) करनेके समय बु हिमानोंकों मौन रहना चहिये. क्यों की शान या शातना होतीहे. अग्नि कोंन, नैरुत कोंन,और दक्षि ण दिशि यह तीन दिशा नोजनके वास्ते वर्जित हे सूर्यके उदय और श्रस्त समय, चंजसूर्यके ग्रहण
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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