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________________ तृतीयपरिजेद. २५५ मूलनायककी प्रथम पूजा करके पीछे अंदर बाहार सब जिनबिंबकी पूजा करना. अवग्रहसें बाहिर नीकलके पी लक्ति सहित वंदना करे. फिर सामने बेहके चैत्य वंदना करे. एक नमुथ्थुणंका पाइसें जघन्य, दो नमुथ्थुणंसे मध्यम, पांच नमुथ्थुणंसे उत्तम चैत्य वंदना जाणनी. फिरनी मुसरी प्रकारसेंनी तीन प्रकारकी चैत्य वंदना होतीहे. स्तुति पाठ बोलते योग मुजा, वंदना करते जिनमुखा, प्रणिधानके समय मुक्ताशुक्ति मुजा, करनी. (नमु. थ्थुणंका पाठ उच्चरते योग मुसा, जावंति चेश्याई यहपाठ बखत जिनमुना, जयवियराय उच्चरते मुक्ताशुक्ति मुना करी जातीहे.) ( यह परंपरागत आम्नायहे) पेटके उपर दो हाथकी कुणी स्थापन करके, कमल डोमाके अकार दोहाथकों एकिके सं योजित करके परस्पर अंगुलियोकों योजित करने कों “योग मुना” कहते हे. ( यह चैत्यवंदन करने के बख्त होती हे) चार घांगुली श्रागे, और तीन श्रांगुली पीछे, पिहुलि (पोहोली) रखे, फिर दोहाथ अपने घुटणके पास टटार रखके, नीची दृष्टीसें खमा रहनेको “जिनमुना” कहतें हें. ( यह कायोत्सर्ग समय होतीहे ) दो घोटणके बिचमें रहे हुवे, मो ति पकनेकी दो बीपके समान दोनुं हाथ परस्पर जुडे हुवे होय; एसे श्राकारवाले दो हाथोंकों अप
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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