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________________ २५७ तृतीयपरिवेद. मय अपने बिरादरोंका शब ( मुरदा) पडा होय, तहां तक, नोजन नही करना. ___ संपदा बते जोजन में लोन रके सो बमा मूर्ख हैं. मानों वो पुरुष अन्य जनोंके लिए धन कमाताहे. अशुद्ध और अज्ञात जाजनमें, जाति बाहिरके घरका वा उनके हाथका, अज्ञात और निषिक अन्न पान फलादिक खाना नही. ___ बाल, स्त्री, गर्नपात, गो, ए चार हत्या करने वाले की, श्राचार व्रष्टो की, कुलमर्यादाका उलंघन करनेवालोकी पंक्ति में बेठ के जाणकार होके जोजन करना नही. मदिरा, मांस, सेहेत, म्रक्षण (खंणी मसका) वड पीपल जंबर वृदादि पांच जाति के फल, अनंतकाय, अज्ञात फल, फूल, साक, पत्र, रात्रि नोजन, कच्चे गोरससें मीला हुवा विदल, फूग लगाहुवा अन्न, दो दिन उपरांत का दहि, बिगमा दुवा अन्न, जिस्में जीव पडे होय एसे फल, पत्र, पुष्प, औरजी जिस्मे जीव उत्पन्न होनेका संजव होय एसे अचा रादिक सब अजदयों कों धर्मवंत प्राणी वर्जित करे. जोजन उर वडीनीतिमे विशेष देरलगाना नहि. पा णी पीनेमें और स्नान करने में उतावल करना नहि. पानी पीना जोजनकी श्रादिमे विष समान. अं. तमें शिक्षासमान और मध्यमे अमृत समान जाणना
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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