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________________ द्वितीयपरिछेद. २३ए यह तप पौष अथवा चैत मासमे सरु नहि करना. पंचमी तप ॥ पांच वर्ष और पांच मास तक सु. दि पांचमीका चोवी हार उपवासकरना. नमोनाण स्स पद गुणना. यथाशक्ति उद्यापन करना. यहतप कार्तिक मिगसर, माघ, फालुन, वैशाख, जेष्ट, श्राषाढ, ए सात मासमेंसे हरेक माससें सिरु कीया जाता है। श्रखंड करना उद्यापन करना. ॥ पुंगरीक तप ॥ चैत्री पुनमके दिन उपवास करके पुंगरीक गण धरके नामकी नवकार वाली गु णे और पुजा करें एसे सात वर्ष करे. उद्यापनमे अगणित श्रावकोंको जिमावे अथवा प्रनावना करे अगणित अव्यसे ज्ञान नक्ति करे अगणित अन्न पान मुनिको वेरावे । जो चिज दीजावे सो गिणनानहि योंहि पसली नरके वेरावे । और प्रजावनानि पस ली जरके देवेपरंगिनेनही. ॥ गुणरत्न संवत्सर तप ॥ यह तप के सेवन करने वालोंको दिवसमें उक श्रासनमे रहना और रात्रिकों वीरासनसें रहना चहिये (वस्त्र रहित रह ना.) यह तप शोलेमासतक करना.तिस्मे प्रथम मा समे एकांतर उपवास करना मुसरे मासमें दो दो उपवास पारणा करना. तीसरे मासे तीन तीन उपवास पारणा करना. चोथा मासें चार चार उपवास उपर पारणा करना. एसें एकेक मासें एकेक
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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