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________________ २३० जैनधर्मसिंधु. ॥ जिन दीदा तप ॥ वीस तिर्थकरोने दीक्षा समय बह कीये तिस्के बेले करने. वासुपूज्यका एक उपवास. महीनाथ पार्श्वनाथजीके तीन तिन उपवास करना. सुमतिनाथ स्वामीके नामका एका शना करना. सबमिल ४७ उपवास एक एकाशणा होताहे. उद्यापनमे ४ मोदकादिक चढा वने अष्ट प्रकारी पूजा ज्ञान गुरु नक्तिकरना. ॥ जिन चवन जन्म कल्याणकतप ॥ एके के जि नके चवन कल्याणक के उपवास करणा. जिनजिन तीर्थरका तप होय तिसदिन तिनके नामकी नवकारवाली गुणे. उद्यापनमें चोवीस चोवीस चीजे चढावे ज्ञानगुरु जक्ति करे. ___गौतमपमघातप ॥ पंदरे पूर्णिमा पर्यंत एकाशनादितप करना. गौतमस्वामिकी प्रतिमाके पास की रका पात्र नरके ढोकना अष्टप्रकारी पूजा करनी. गौतमस्वामीकी प्रतिमाकै अनावे महावीर स्वामी की पूजाकरनी. उद्यापनमें चांदीका पमघा (पात्रे ) दीरजर के गौतमस्वामी अथवा महावीरस्वामिके पास ढोकनां गुरुजीको जोली पात्रे प्रमुख देनां. ॥ लघुपंचमी तप ॥ सुदी और वदीकी पंचमीका उपवास करना नमोनाणस्स गुणणा. एक वर्षके चोवीस और एक उपर उपवास करके २५ उपवाससे यह तप पूराकरना. यथाशक्ति उद्यापन करना।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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