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________________ ३४० जैनधर्मसिंधु. दिन तपका बढाते जानां. एसे शोल मास तप करनां. शोले मासमे सब मिल ४७ दिन उपवास श्रावेगे. सब मिलके ७३ पारणा होतेहे. सिक पद गुणणां उद्यापन यथाशक्ती॥ आयंबिलवई मान तप ॥ प्रथम एक आयंबिल करके एक उपवास, दो आयंबिल करके एक उपवास, तीन श्रआयंबिल करके एक उपवास, चार आयं बिल करके एक उपवास एसे एकेक आयंबिल वढाते जांनां यावत् एकसो आयंबिल पर्यंत बढानां. सों थायंबिल उपर एक उपवास करें यह तपमे सबमिल एकसो उपवास थावें और पांचहजार पचास आयंबिल होतेंहे. ए महा तपका सेवन चौदेवर्ष, तीनमास और वीस दिनसें पूरा होताहे. उद्यापन यथा शक्ती करे. ॥अक्षयनिधि तप ॥ घर देरासरमे अथवा उपाश्रयादि उत्तम स्थानमे विचित्र चित्रित घटस्थापन करें तीस्मे प्रतिदिन मुठीनरके चावल और यथाशक्ति अव्य मालतें जाय. यथाशक्ति एकाशनादिक तपकरे. पजुसणके पनरे दिन पहिलें एतप सरुकरे पजुसणमे तप समाप्ति होय तेंसे आदर करें. पजुसणमे घटपूर्ण जर जाय और तपनि पूर्ण होय.पूर्ण होनेसे ऊपर श्रीफल वस्त्र मौली बांधके वाजिनादि महोत्सव पूर्वक मंदिरमें लाकें रखें और स्नानादि
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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